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उदु॑ तिष्ठ सवितः श्रु॒ध्य१॒॑स्य हिर॑ण्यपाणे॒ प्रभृ॑तावृ॒तस्य॑। व्यु१॒॑र्वीं पृ॒थ्वीम॒मतिं॑ सृजा॒न आ नृभ्यो॑ मर्त॒भोज॑नं सुवा॒नः ॥२॥

English Transliteration

ud u tiṣṭha savitaḥ śrudhy asya hiraṇyapāṇe prabhṛtāv ṛtasya | vy urvīm pṛthvīm amatiṁ sṛjāna ā nṛbhyo martabhojanaṁ suvānaḥ ||

Pad Path

उत्। ऊँ॒ इति॑। ति॒ष्ठ॒। स॒वि॒त॒रिति॑। श्रु॒धि॒। अ॒स्य। हिर॑ण्यऽपाणे। प्रऽभृ॑तौ। ऋ॒तस्य॑। वि। उ॒र्वीम्। पृ॒थ्वीम्। अ॒मति॑म्। सृ॒जा॒नः। आ। नृऽभ्यः॑। म॒र्त॒ऽभोज॑नम्। सु॒वा॒नः ॥२॥

Rigveda » Mandal:7» Sukta:38» Mantra:2 | Ashtak:5» Adhyay:4» Varga:5» Mantra:2 | Mandal:7» Anuvak:3» Mantra:2


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर वह जगदीश्वर कैसा है, इस विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥

Word-Meaning: - (हिरण्यपाणे) हित से रमणरूप व्यवहार जिसका (सवितः) वह अन्तर्यामी है जगदीश्वर ! आप (अस्य) इस जीव की किई स्तुति (श्रुधि) सुनिये (उ) और इसके हृदय में (उत्, तिष्ठ) उठिये अर्थात् उत्कर्ष से प्राप्त हूजिये और (ऋतस्य) सत्य कारण की (प्रभृतौ) अत्यन्त धारणा में (अमतिम्) अच्छे अपने रूपवाली (उर्वीम्) बहुत पदार्थयुक्त (पृथ्वीम्) पृथिवी को (वि, सृजानः) उत्पन्न करते हुए (नृभ्यः) मनुष्यों के लिये (मर्त्तभोजनम्) मनुष्यों को जो भोजन है उसे (आ, सुवानः) प्रेरणा देते हुए कृपा कीजिये ॥२॥
Connotation: - जो सत्यभाव से धर्म का अनुष्ठान कर योग का अभ्यास करते हैं, उनके आत्मा में परमात्मा प्रकाशित होता है, जिस ईश्वर ने समस्त जगत् उत्पन्न कर मनुष्यादिकों का अन्नादि से हित सिद्ध किया, उसको छोड़ किसी और की उपासना मनुष्य कभी न करें ॥२॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनस्स जगदीश्वरः कीदृशोऽस्तीत्याह ॥

Anvay:

हे हिरण्यपाणे सवितर्जगदीश्वर ! त्वमस्य स्तुतिं श्रुधि उ अस्य हृदय उत्तिष्ठ उत्कृष्टतया प्राप्नुहि ऋतस्य प्रभृतावमतिमुर्वीं पृथ्वीं वि सृजानः मा नृभ्यो मर्तभोजनमा सुवानः सन् कृपस्व ॥२॥

Word-Meaning: - (उत्) (उ) (तिष्ठ) प्रकाशितो भव (सवितः) अन्तर्यामिन् (श्रुधि) शृणु (अस्य) जीवस्य हृदये (हिरण्यपाणे) हिरण्यं हितरमणं पाणिर्व्यवहारो यस्य तत्सम्बुद्धौ (प्रभृतौ) प्रकृष्टतया धारणे (ऋतस्य) सत्यस्य कारणस्य (वि) (उर्वीम्) बहुपदार्थयुक्ताम् (पृथ्वीम्) भूमिम् (अमतिम्) सुखरूपाम् (सृजानः) उत्पादयन् (आ) समन्तात् (नृभ्यः) मनुष्येभ्यः (मर्तभोजनम्) मर्तेभ्य इदं भोजनं मर्तभोजनम् (सुवानः) प्रेरयन् ॥२॥
Connotation: - ये सत्यभावेन धर्ममनुष्ठाय योगमभ्यस्यन्ति तेषामात्मनि परमात्मा प्रकाशितो भवति येनेश्वरेण सकलं जगदुत्पाद्य मनुष्यादीनामन्नादिना हितं सम्पादितं तं विहाय कस्याप्यन्यस्योपासनां मनुष्याः कदापि मा कुर्युः ॥२॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - जे सत्याने वागून योगाचा अभ्यास करतात त्यांच्या आत्म्यात परमात्मा प्रकट होतो. ज्या परमेश्वराने संपूर्ण जग निर्माण केलेले आहे, माणसांनी अन्न इत्यादी दिलेले असून त्यांचे हित केलेले आहे, त्याला सोडून माणसांनी इतर कुणाचीही उपासना करू नये. ॥ २ ॥