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त्वमि॑न्द्र॒ स्वय॑शा ऋभु॒क्षा वाजो॒ न सा॒धुरस्त॑मे॒ष्यृक्वा॑। व॒यं नु ते॑ दा॒श्वांसः॑ स्याम॒ ब्रह्म॑ कृ॒ण्वन्तो॑ हरिवो॒ वसि॑ष्ठाः ॥४॥

English Transliteration

tvam indra svayaśā ṛbhukṣā vājo na sādhur astam eṣy ṛkvā | vayaṁ nu te dāśvāṁsaḥ syāma brahma kṛṇvanto harivo vasiṣṭhāḥ ||

Pad Path

त्वम्। इ॒न्द्र॒। स्वऽय॑शाः। ऋ॒भु॒क्षाः। वाजः॑। न। सा॒धुः। अस्त॑म्। ए॒षि॒। ऋक्वा॑। व॒यम्। नु। ते॒। दा॒श्वांसः॑। स्या॒म॒। ब्रह्म॑। कृ॒ण्वन्तः॑। ह॒रि॒ऽवः॒। वसि॑ष्ठाः ॥४॥

Rigveda » Mandal:7» Sukta:37» Mantra:4 | Ashtak:5» Adhyay:4» Varga:3» Mantra:4 | Mandal:7» Anuvak:3» Mantra:4


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर मनुष्य कैसे हों, इस विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥

Word-Meaning: - हे (हरिवः) प्रशंसित मनुष्यों (इन्द्र) और योगैश्वर्यों से युक्त जन ! जो (ऋभुक्षाः) मेधावी (स्वयशाः) अपनी कीर्ति से युक्त (ऋक्वाः) सत्कार करनेवाले (वाजः) ज्ञानवान् के (न) समान (साधुः) सत्कर्म सेवने हारे (त्वम्) आप (अस्तम्) घर को (एषि) प्राप्त होते हैं उन (ते) आप के (ब्रह्म) धन वा अन्न को (नु) शीघ्र (कृण्वन्तः) सिद्ध करते हुए (वसिष्ठाः) अतीव अच्छे गुण कर्मों के बीच निवास करनेवाले (वयम्) हम लोग (दाश्वांसः) दानशील (स्याम) हों ॥४॥
Connotation: - इस मन्त्र में उपमालङ्कार है । जो अच्छे मार्ग में स्थिर, साधु जनों के समान धर्मों का आचरण करते हैं, वे ऐश्वर्य के साथ हो अर्थात् ऐश्वर्य्यवान् होकर दानशील होते हैं ॥४॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनर्मनुष्याः कीदृशा भवेयुरित्याह ॥

Anvay:

हे हरिव इन्द्र ! य ऋभुक्षाः स्वयशा ऋक्वा वाजो न साधुस्त्वमस्तमेषि तस्य ते ब्रह्म न कृण्वन्तो वसिष्ठा वयं दाश्वांसः स्याम ॥४॥

Word-Meaning: - (त्वम्) (इन्द्र) योगैश्वर्ययुक्त (स्वयशाः) स्वकीयं यशः कीर्तिर्यस्य सः (ऋभुक्षाः) मेधावी (वाजः) ज्ञानवान् (न) इव (साधुः) सत्कर्मसेवी (अस्तम्) गृहम् (एषि) प्राप्नोषि (ऋक्वा) सत्कर्त्ता (वयम्) (नु) क्षिप्रम् (ते) तव (दाश्वांसः) दातारः (स्याम) भवेम (ब्रह्म) धनमन्नं वा (कृण्वन्तः) कुर्वन्तः (हरिवः) प्रशस्तमनुष्ययुक्त (वसिष्ठाः) अतिशयेन सद्गुणकर्मसु निवासिनः ॥४॥
Connotation: - अत्रोपमालङ्कारः । ये सन्मार्गस्थाः साधव इव धर्मानाचरन्ति ते सहैश्वर्या भूत्वा दातारो भवन्ति ॥४॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - या मंत्रात उपमालंकार आहे. जे चांगल्या मार्गात स्थिर राहून साधूंप्रमाणे वागतात ते ऐश्वर्यवान बनतात व दानशीलही होतात. ॥ ४ ॥