उ॒वोचि॑थ॒ हि म॑घवन्दे॒ष्णं म॒हो अर्भ॑स्य॒ वसु॑नो विभा॒गे। उ॒भा ते॑ पू॒र्णा वसु॑ना॒ गभ॑स्ती॒ न सू॒नृता॒ नि य॑मते वस॒व्या॑ ॥३॥
uvocitha hi maghavan deṣṇam maho arbhasya vasuno vibhāge | ubhā te pūrṇā vasunā gabhastī na sūnṛtā ni yamate vasavyā ||
उ॒वोचि॑थ। हि। म॒घ॒ऽव॒न्। दे॒ष्णम्। म॒हः। अर्भ॑स्य। वसु॑नः। वि॒ऽभा॒गे। उ॒भा। ते॒। पू॒र्णा। वसु॑ना। गभ॑स्ती॒ इति॑। न। सू॒नृता॑। नि। य॒म॒ते॒। व॒स॒व्या॑ ॥३॥
SWAMI DAYANAND SARSWATI
फिर धनाढ्य किस को दान देवें, इस विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥
SWAMI DAYANAND SARSWATI
पुनर्धनाढ्याः कस्मै दानं दद्युरित्याह ॥
हे मघवन् ! हि यतस्त्वं महोऽर्भस्य वसुनो विभागे देष्णमुवोचिथ यस्य त उभा गभस्ती वसुना पूर्णा वर्त्तेते तस्य तव वसव्या सूनृता वाक् केनापि न नि यमते ॥३॥
MATA SAVITA JOSHI
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