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उ॒वोचि॑थ॒ हि म॑घवन्दे॒ष्णं म॒हो अर्भ॑स्य॒ वसु॑नो विभा॒गे। उ॒भा ते॑ पू॒र्णा वसु॑ना॒ गभ॑स्ती॒ न सू॒नृता॒ नि य॑मते वस॒व्या॑ ॥३॥

English Transliteration

uvocitha hi maghavan deṣṇam maho arbhasya vasuno vibhāge | ubhā te pūrṇā vasunā gabhastī na sūnṛtā ni yamate vasavyā ||

Pad Path

उ॒वोचि॑थ। हि। म॒घ॒ऽव॒न्। दे॒ष्णम्। म॒हः। अर्भ॑स्य। वसु॑नः। वि॒ऽभा॒गे। उ॒भा। ते॒। पू॒र्णा। वसु॑ना। गभ॑स्ती॒ इति॑। न। सू॒नृता॑। नि। य॒म॒ते॒। व॒स॒व्या॑ ॥३॥

Rigveda » Mandal:7» Sukta:37» Mantra:3 | Ashtak:5» Adhyay:4» Varga:3» Mantra:3 | Mandal:7» Anuvak:3» Mantra:3


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर धनाढ्य किस को दान देवें, इस विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥

Word-Meaning: - हे (मघवन्) बहुधनयुक्त ! (हि) जिस से आप (महः) बहुत वा (अर्भस्य) थोड़े (वसुनः) धन के (विभागे) विभाग में (देष्णम्) देने योग्य को (उवोचिथ) कहो जिन (ते) आप के (उभा) दोनों (गभस्ती) हाथ (वसुना) धन से (पूर्णा) पूर्ण वर्त्तमान हैं उन आपकी (वसव्या) धनों में उत्तम (सूनृता) सत्य और प्रिय वाणी किसी से भी (न) नहीं (नि, यमते) नियम को प्राप्त होती अर्थात् रुकती है ॥३॥
Connotation: - जो धनाढ्य जन बहुत वा थोड़े धन वा सुपात्र और कुपात्र वा धर्म और अधर्म के विभाग में सुपात्र और धर्म की वृद्धि के लिये धन दान करते हैं, उन की कीर्ति चिरकाल तक ठहरनेवाली होती है ॥३॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनर्धनाढ्याः कस्मै दानं दद्युरित्याह ॥

Anvay:

हे मघवन् ! हि यतस्त्वं महोऽर्भस्य वसुनो विभागे देष्णमुवोचिथ यस्य त उभा गभस्ती वसुना पूर्णा वर्त्तेते तस्य तव वसव्या सूनृता वाक् केनापि न नि यमते ॥३॥

Word-Meaning: - (उवोचिथ) उपदिश (हि) (मघवन्) बहुधनयुक्त (देष्णम्) दातुं योग्यम् (महः) (अर्भस्य) अल्पस्य (वसुनः) धनस्य (विभागे) विभजन्ति यस्मिँस्तस्मिन् (उभा) उभौ (ते) तव (पूर्णा) पूर्णौ (वसुना) धनेन (गभस्ती) हस्तौ (न) निषेधे (सूनृता) सत्यप्रियवाणी (नि) (यमते) (वसव्या) वसुषु धनेषु साध्वी ॥३॥
Connotation: - ये धनाढ्याः महतोऽल्पस्य धनस्य सुपात्रकुपात्रयोर्धर्माधर्मयोर्विभागेन सुपात्रधर्मवृद्धये च धनदानं कुर्वन्ति तेषां कीर्तिश्चिरन्तनी भवति ॥३॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - जे श्रीमंत लोक जास्त किंवा कमी धन सुपात्र व कुपात्र तसेच धर्म व अधर्म जाणून सुपात्रांना धर्माच्या वृद्धीसाठी धन देतात त्यांची कीर्ती चिरकालपर्यंत टिकते. ॥ ३ ॥