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इ॒मां वां॑ मित्रावरुणा सुवृ॒क्तिमिषं॒ न कृ॑ण्वे असुरा॒ नवी॑यः। इ॒नो वा॑म॒न्यः प॑द॒वीरद॑ब्धो॒ जनं॑ च मि॒त्रो य॑तति ब्रुवा॒णः ॥२॥

English Transliteration

imāṁ vām mitrāvaruṇā suvṛktim iṣaṁ na kṛṇve asurā navīyaḥ | ino vām anyaḥ padavīr adabdho janaṁ ca mitro yatati bruvāṇaḥ ||

Pad Path

इ॒माम्। वा॒म्। मि॒त्रा॒व॒रु॒णा॒। सु॒ऽवृ॒क्तिम्। इष॑म्। न। कृ॒ण्वे॒। अ॒सु॒रा॒। नवी॑यः। इ॒नः। वा॒म्। अ॒न्यः। प॒द॒वीः। अद॑ब्धः। जन॑म्। च॒। मि॒त्रः। य॒त॒ति॒। ब्रु॒वा॒णः ॥२॥

Rigveda » Mandal:7» Sukta:36» Mantra:2 | Ashtak:5» Adhyay:4» Varga:1» Mantra:2 | Mandal:7» Anuvak:3» Mantra:2


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर मनुष्य किस को सेवें, इस विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥

Word-Meaning: - हे (असुरा) प्राणों में रमते हुए (मित्रावरुणा) प्राण और उदान के समान अध्यापक और उपदेशको ! जो (अन्यः) और जन (पदवी) पद को प्राप्त होता और (अदब्धः) अहिंसित (मित्रः) सखा (इनः) ईश्वर (ब्रुवाणः) उपदेश करता हुआ (वाम्) तुम दोनों को (जनम्, च) और जन को भी (नवीयः) अत्यन्त नवीन व्यवहार की प्राप्ति कराने का (यतति) यत्न कराता तथा (वाम्) तुम दोनों की (इमाम्) इस प्रत्यक्ष (सुवृक्तिम्) जिससे सुन्दरता से दुःखों की निवृत्ति करते हैं उस सत्य वाणी को (इषम्) इच्छा वा अन्न के (न) समान देता है, जिसको कि मैं परोपकार के लिये (कृण्वे) सिद्ध करता हूँ, उस को मैं और तुम नित्य सेवें ॥२॥
Connotation: - हे मनुष्यो ! आप जो सब के लिये अलग सर्वव्यापी सब का मित्र जगदीश्वर सब के हित के लिये सदैव प्रवृत्त है, उसी की उपासना कर मोक्ष पद को प्राप्त होवें ॥२॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनर्मनुष्याः कं भजेयुरित्याह ॥

Anvay:

हे असुरा मित्रावरुणा ! योऽन्यः पदवीरदब्धो मित्र इनो ब्रुवाणः सन् वां जनञ्च नवीयः प्रापयितुं यतति वामिमां सुवृक्तिं सत्यां वाचमिषन्न प्र यच्छति यामहं परोपकाराय कृण्वे तां युवामहं च नित्यं भजेम ॥२॥

Word-Meaning: - (इमाम्) (वाम्) युवयोः (मित्रावरुणा) प्राणोदानाविवाध्यापकोपदेशकौ (सुवृक्तिम्) सुष्ठु वर्जन्ति दुःखानि यया ताम् वाचं (इषम्) इच्छामन्नं वा (न) इव (कृण्वे) करोमि (असुरा) यावसुषु रमेते तौ (नवीयः) अतिशयेन नवीनम् (इनः) ईश्वरः (वाम्) युवयोः (अन्यः) (पदवीः) यः पदं व्येति सः (अदब्धः) अहिंसितः (जनम्) (च) (मित्रः) सखा (यतति) यतते। अत्र व्यत्ययेन परस्मैपदम् (ब्रुवाणः) उपदिशन् ॥२॥
Connotation: - हे मनुष्या ! भवन्तो यस्सर्वेभ्यः पृथक् सर्वव्यापी सर्वसुहृज्जगदीश्वरः सर्वेषां हिताय सदा वर्तते तमेवोपास्य मोक्षपदवीं प्राप्नुवन्तु ॥२॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - हे माणसांनो! जो सर्वांहून पृथक, सर्वव्यापी, सर्वांचा मित्र जगदीश्वर सर्वांच्या हितासाठी सदैव प्रवृत्त असतो त्याचीच उपासना करून मोक्षपद प्राप्त करा. ॥ २ ॥