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शं नः॒ सूर्य॑ उरु॒चक्षा॒ उदे॑तु॒ शं न॒श्चत॑स्रः प्र॒दिशो॑ भवन्तु। शं नः॒ पर्व॑ता ध्रुवयो॑ भवन्तु॒ शं नः॒ सिन्ध॑वः॒ शमु॑ स॒न्त्वापः॑ ॥८॥

English Transliteration

śaṁ naḥ sūrya urucakṣā ud etu śaṁ naś catasraḥ pradiśo bhavantu | śaṁ naḥ parvatā dhruvayo bhavantu śaṁ naḥ sindhavaḥ śam u santv āpaḥ ||

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Pad Path

शम्। नः॒। सूर्यः॑। उ॒रु॒ऽचक्षाः॑। उत्। ए॒तु॒। शम्। नः॒। चत॑स्रः। प्र॒ऽदिशः॑। भ॒व॒न्तु॒। शम्। नः॒। पर्व॑ताः। ध्रु॒वयः॑। भ॒व॒न्तु॒। शम्। नः॒। सिन्ध॑वः। शम्। ऊँ॒ इति॑। स॒न्तु॒। आपः॑ ॥८॥

Rigveda » Mandal:7» Sukta:35» Mantra:8 | Ashtak:5» Adhyay:3» Varga:29» Mantra:3 | Mandal:7» Anuvak:3» Mantra:8


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर विद्वान् जनों को क्या इच्छा करनी चाहिये, इस विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥

Word-Meaning: - हे परमेश्वर वा विद्वान् ! आपकी शिक्षा से (उरुचक्षाः) जिससे बहुत दर्शन होते हैं वह (सूर्यः) सूर्य (नः) हम लोगों के लिये (शम्) सुख रूप (उत्, एतु) उदय हो (चतस्रः) चार (प्रदिशः) पूर्वादि वा रोशनी आदि दिशा वा विदिशा (नः) हम लोगों के लिये (शम्) सुखरूप (भवन्तु) हों (ध्रुवयः) अपने-अपने स्थान में स्थिर (पर्वताः) पर्वत (नः) हम लोगों के लिये (शम्) सुखरूप (भवन्तु) होवें (सिन्धवः) नदी वा समुद्र (नः) हम लोगों के लिये (शम्) सुखरूप और (आपः) जल वा प्राण (शम्) सुखरूप (उ) ही (सन्तु) हों ॥८॥
Connotation: - जो जगदीश्वर ने बनाये हुए सूर्यादिकों से उपकार ले सकते हैं, वे इस जगत् में श्री, राज्य और कीर्तिवाले होते हैं ॥८॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनर्विद्वद्भिः किमेष्टव्यमित्याह ॥

Anvay:

हे परेश विद्वन् वा ! भवच्छिक्षया उरुचक्षास्सूर्यः नः शमुदेतु चतस्रः प्रदिशः नः शं भवन्तु ध्रुवयः पर्वता नः शं भवन्तु सिन्धवो नः शमापः शमु सन्तु ॥८॥

Word-Meaning: - (शम्) (नः) (सूर्यः) सविता (उरुचक्षाः) उरूणि बहूनि चक्षांसि दर्शनानि यस्मात् सः (उत्) (एतु) (शम्) (नः) (चतस्रः) (प्रदिशः) पूर्वाद्या ऐशान्याद्या वा (भवन्तु) (शम्) (नः) (पर्वताः) शैलाः (ध्रुवयः) स्वस्वस्थाने स्थिराः (भवन्तु) (शम्) (नः) (सिन्धवः) नद्यः समुद्रा वा (शम्) (उ) (सन्तु) (आपः) जलानि प्राणा वा ॥८॥
Connotation: - ये जगदीश्वरनिर्मितेभ्यः सूर्यादिभ्यः उपकारानादातुं शक्नुवन्ति तेऽत्र श्री राज्यसत्कीर्तिमन्तो जायन्ते ॥८॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - जे जगदीश्वराने निर्माण केलेल्या सूर्य इत्यादीद्वारे त्यांचा उपयोग करून घेऊ इच्छितात ते या जगात श्री, राज्य व कीर्ती मिळवितात. ॥ ८ ॥