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शं नो॑ अ॒ग्निर्ज्योति॑रनीको अस्तु॒ शं नो॑ मि॒त्रावरु॑णाव॒श्विना॒ शम्। शं नः॑ सु॒कृतां॑ सुकृ॒तानि॑ सन्तु॒ शं न॑ इषि॒रो अ॒भि वा॑तु॒ वातः॑ ॥४॥

English Transliteration

śaṁ no agnir jyotiranīko astu śaṁ no mitrāvaruṇāv aśvinā śam | śaṁ naḥ sukṛtāṁ sukṛtāni santu śaṁ na iṣiro abhi vātu vātaḥ ||

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Pad Path

शम्। नः॒। अ॒ग्निः। ज्योतिः॑ऽअनीकः। अ॒स्तु॒। शम्। नः॒। मि॒त्रावरु॑णौ। अ॒श्विना॑। शम्। शम्। नः॒। सु॒ऽकृता॑म्। सु॒ऽकृ॒तानि॑। स॒न्तु॒। शम्। नः॒। इ॒षि॒रः। अ॒भि। वा॒तु॒। वातः॑ ॥४॥

Rigveda » Mandal:7» Sukta:35» Mantra:4 | Ashtak:5» Adhyay:3» Varga:28» Mantra:4 | Mandal:7» Anuvak:3» Mantra:4


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर मनुष्यों को क्या करना चाहिये, इस विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥

Word-Meaning: - हे जगदीश्वर वा विद्वान् ! आप की कृपा से (ज्योतिरनीकः) ज्योति ही सेना के समान जिस की (अग्निः) वह अग्नि (नः) हम लोगों के लिये (शम्) सुखरूप (अस्तु) हो (अश्विना) व्यापक पदार्थ (शम्) सुखरूप और (मित्रावरुणौ) प्राण और उदान (नः) हमारे लिये (शम्) सुखरूप होवें (नः) हम (सुकृताम्) सुन्दर धर्म करनेवालों के (सुकृतानि) धर्माचरण (शम्) सुखरूप (सन्तु) हों और (इषिरः) शीघ्र जानेवाला (वातः) वायु (नः) हम लोगों के लिये (शम्) सुखरूप (अभि, वातु) सब ओर से बहे ॥४॥
Connotation: - जो अग्नि और वायु आदि पदार्थों से कार्य्यों को सिद्ध करते हैं, वे समग्र ऐश्वर्य को प्राप्त होते हैं ॥४॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनर्मनुष्यैः किं कर्तव्यमित्याह ॥

Anvay:

हे जगदीश्वर विद्वन् वा ! भवत्कृपया ज्योतिरनीकोऽग्निर्नः शमस्त्वश्विना शं मित्रावरुणौ नः शं भवतां न सुकृतां सुकृतानि शम् [सन्तु] इषिरो वातो नः शमभि वातु ॥४॥

Word-Meaning: - (शम्) (नः) (अग्निः) पावकः (ज्योतिरनीकः) ज्योतिरेवानीकं सैन्यमिव यस्य सः (अस्तु) (शम्) (नः) (मित्रावरुणौ) प्राणोदानौ (अश्विना) व्यापिनौ (शम्) (शम्) (नः) (सुकृताम्) ये सुष्ठु धर्ममेव कुर्वन्ति तेषाम् (सुकृतानि) धर्माचरणानि (सन्तु) (शम्) (नः) (इषिरः) सद्यो गन्ता (अभि) (वातु) (वातः) वायुः ॥४॥
Connotation: - ये अग्निवाय्वादिभ्यः कार्याणि साध्नुवन्ति ते समग्रैश्वर्यमश्नुवन्ति ॥४॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - जे अग्नी व वायू इत्यादी पदार्थार्ंनी कार्य करतात ते संपूर्ण ऐश्वर्य प्राप्त करतात. ॥ ४ ॥