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शं न॑ इन्द्रा॒ग्नी भ॑वता॒मवो॑भिः॒ शं न॒ इन्द्रा॒वरु॑णा रा॒तह॑व्या। शमिन्द्रा॒सोमा॑ सुवि॒ताय॒ शं योः शं न॒ इन्द्रा॑पू॒षणा॒ वाज॑सातौ ॥१॥

English Transliteration

śaṁ na indrāgnī bhavatām avobhiḥ śaṁ na indrāvaruṇā rātahavyā | śam indrāsomā suvitāya śaṁ yoḥ śaṁ na indrāpūṣaṇā vājasātau ||

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Pad Path

शम्। नः॒। इ॒न्द्रा॒ग्नी इति॑। भ॒व॒ता॒म्। अवः॑ऽभिः। शम्। नः॒। इन्द्रा॒वरु॑णा। रा॒तऽह॑व्या। शम्। इन्द्रा॒सोमा॑। सु॒वि॒ताय॑। शम्। योः। शम्। नः॒। इन्द्रा॑पू॒षणा। वाज॑ऽसातौ ॥१॥

Rigveda » Mandal:7» Sukta:35» Mantra:1 | Ashtak:5» Adhyay:3» Varga:28» Mantra:1 | Mandal:7» Anuvak:3» Mantra:1


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

अब पन्द्रह ऋचावाले पैंतीसवें सूक्त का आरम्भ है, उसके प्रथम मन्त्र में मनुष्यों को सृष्टिपदार्थों से क्या-क्या ग्रहण करना चाहिये, इस विषय को कहते हैं ॥

Word-Meaning: - हे जगदीश्वर ! (वाजसातौ) संग्राम में (सुविताय) ऐश्वर्य होने के लिये (नः) हम लोगों को (अवोभिः) रक्षा आदि के साथ (इन्द्राग्नी) बिजुली और साधारण अग्नि (शम्) सुख करनेवाले (शम्) मङ्गल करनेवाले (रातहव्या) दीनी है ग्रहण करने को वस्तु जिन्होंने ऐसे (इन्द्रावरुणा) बिजुली और जल (नः) हम लोगों के लिये (शम्) सुख करनेवाले (इन्द्रासोमा) बिजुली ओषधिगण (शम्) सुखकारक (योः) सुख के निमित्त और (इन्द्रापूषणा) बिजुली और वायु (नः) हमारे लिये (शम्) आनन्द देनेवाले (भवताम्) हों, वैसा हम लोग प्रयत्न करें ॥१॥
Connotation: - हे जगदीश्वर ! आप की कृपा से, विद्वानों के सङ्ग से और अपने पुरुषार्थ से आप की रची हुई सृष्टि में वर्त्तमान बिजुली आदि पदार्थों से हम लोग उपकार करना कराना चाहते हैं, सो यह हम लोगों का प्रयत्न सफल हो ॥१॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

मनुष्यैः सृष्टिपदार्थेभ्यः किं किं ग्रहीतव्यमित्याह ॥

Anvay:

हे जगदीश्वर ! वाजसातौ सुविताय नोऽवोभिस्सहेन्द्राग्नी शं शं रातहव्येन्द्रावरुणा नश्शमिन्द्रासोमा शं योरिन्द्रापूषणा नः शं च भवतां तथा वयं प्रयतेमहि ॥१॥

Word-Meaning: - (शम्) सुखकारकौ (नः) अस्मभ्यम् (इन्द्राग्नी) विद्युत्पावकौ (भवताम्) (अवोभिः) रक्षणादिभिः (शम्) मङ्गलकारकौ (नः) (अस्मभ्यम्) (इन्द्रावरुणा) विद्युज्जले (रातहव्या) रातं दत्तं हव्यं ग्रहीतुं योग्यं वस्तु याभ्यां तौ (शम्) सुखवर्धकौ (इन्द्रासोमा) विद्युदोषधिगणौ (सुविताय) ऐश्वर्याय (शम्) (योः) सुखनिमित्तौ (शम्) आनन्दप्रदौ (नः) अस्मभ्यम् (इन्द्रापूषणा) विद्युद्वायू (वाजसातौ) सङ्ग्रामे ॥१॥
Connotation: - हे जगदीश्वर ! भवत्कृपया विद्वत्सङ्गेन स्वपुरुषार्थेन भवद्रचितायां सृष्टौ वर्त्तमानेभ्यो विद्युदादिपदार्थेभ्यो वयमुपकारं ग्रहीतुं ग्राहयितुमिच्छामस्सोऽयमस्माकं प्रयत्नः सफलः स्यात् ॥१॥
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MATA SAVITA JOSHI

या सूक्तात सर्व सुखाच्या प्राप्तीसाठी सृष्टिविद्या व विद्वानांच्या संगतीचा उपदेश केलेला आहे. त्यामुळे या सूक्ताच्या अर्थाची या पूर्वीच्या सूक्तार्थाबरोबर संगती जाणावी.

Word-Meaning: - N/A
Connotation: - हे जगदीश्वरा ! तुझ्या कृपेने विद्वानांच्या संगतीने व आपल्या पुरुषार्थाने तू निर्माण केलेल्या सृष्टीत विद्युत इत्यादी पदार्थांनी आम्ही उपकार करण्या व करविण्याची इच्छा बाळगतो. त्या दृष्टीने आमचा प्रयत्न सफल व्हावा. ॥ १ ॥