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प्रति॑ नः॒ स्तोमं॒ त्वष्टा॑ जुषेत॒ स्याद॒स्मे अ॒रम॑तिर्वसू॒युः ॥२१॥

English Transliteration

prati naḥ stomaṁ tvaṣṭā juṣeta syād asme aramatir vasūyuḥ ||

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Pad Path

प्रति॑। नः॒। स्तोम॑म्। त्वष्टा॑। जु॒षे॒त॒। स्यात्। अ॒स्मे इति॑। अ॒रम॑तिः। व॒सु॒ऽयुः ॥२१॥

Rigveda » Mandal:7» Sukta:34» Mantra:21 | Ashtak:5» Adhyay:3» Varga:27» Mantra:1 | Mandal:7» Anuvak:3» Mantra:21


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर वे राजा और मन्त्री आदि परस्पर कैसे वर्तें, इस विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥

Word-Meaning: - हे विद्वानो ! जैसे हम लोग राजा की प्रीति से सेवा करें, वैसे (अरमतिः) पूर्ण मति है जिस की (वसूयुः) धनों की कामना करता हुआ (त्वष्टा) दुःखविच्छेद करनेवाला राजा (नः) हम लोगों को (प्रति, जुषेत) प्रीति से सेवे जैसे यह राजा हमारी (स्तोमम्) प्रशंसा को सेवे, वैसे हम लोग इसकी कीर्ति को सेवें जैसे यह (अस्मे) हम लोगों में प्रसन्न (स्यात्) हो, वैसे हम लोग भी इस में प्रसन्न हों ॥२१॥
Connotation: - इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है । जहाँ राजा अमात्यभृत्य और प्रजाजन एक-दूसरे की उन्नति को करना चाहते हैं, वहाँ समस्त ऐश्वर्य, सुख और वृद्धि होती है ॥२१॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनस्ते राजामात्यादयः परस्परं कथं वर्त्तेरन्नत्यिाह ॥

Anvay:

हे विद्वांसो ! यथा वयं राजानं प्रीत्या सेवेमहि तथाऽरमतिर्वसूयुस्त्वष्टा राजा नोऽस्मान् प्रति जुषेत यथाऽयं राजा नः स्तोमं जुषेत तथा वयमस्य कीर्तिं सेवेमहि यथाऽयमस्मे प्रीतः स्यात् तथा वयमप्यस्मिन् प्रीताः स्याम ॥२१॥

Word-Meaning: - (प्रति) (नः) अस्मान्नस्माकं वा (स्तोमम्) प्रशंसाम् (त्वष्टा) दुःखविच्छेदको राजा (जुषेत) प्रीत्या सेवेत (स्यात्) भवेत् (अस्मे) अस्मासु (अरमतिः) अरं अलं मतिः प्रज्ञा यस्य सः (वसूयुः) वसूनि धनानि कामयमानः ॥२१॥
Connotation: - अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः। यत्र राजामात्यभृत्यप्रजाजना अन्योऽन्येषामुन्नतिं चिकीर्षन्ति तत्र सर्वमैश्वर्यं सुखं वर्धनं च प्रजायते ॥२१॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. जेथे राजा, अमात्य भृत्य वा प्रजा एकमेकांची उन्नती इच्छितात तेथे संपूर्ण ऐश्वर्य, सुख व सर्व प्रकारे वृद्धी होते. ॥ २१ ॥