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आ यन्नः॒ पत्नी॒र्गम॒न्त्यच्छा॒ त्वष्टा॑ सुपा॒णिर्दधा॑तु वी॒रान् ॥२०॥

English Transliteration

ā yan naḥ patnīr gamanty acchā tvaṣṭā supāṇir dadhātu vīrān ||

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Pad Path

आ। यत्। नः॒। पत्नीः॑। गम॑न्ति। अच्छ॑। त्वष्टा॑। सु॒ऽपा॒णिः। दधा॑तु। वी॒रान् ॥२०॥

Rigveda » Mandal:7» Sukta:34» Mantra:20 | Ashtak:5» Adhyay:3» Varga:26» Mantra:10 | Mandal:7» Anuvak:3» Mantra:20


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर राजा और अन्य भृत्य परस्पर कैसे वर्तें, इस विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥

Word-Meaning: - हे राजन् ! जैसे (यत्) जो (पत्नीः) भार्या (नः) हम लोगों को (अच्छा) अच्छे प्रकार (आ, गमन्ति) प्राप्त होती और रक्षा करती हैं और जैसे हम लोग उनकी रक्षा करें, वैसे (त्वष्टा) दुःख विच्छेद करनेवाला (सुपाणिः) सुन्दर हाथों से युक्त राजा आप (वीरान्) शूरता आदि गुणों से युक्त मन्त्री और भृत्यों को (दधातु) धारण करो ॥२०॥
Connotation: - इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है । जैसे पतिव्रता स्त्री स्त्रीव्रत पति जन परस्पर की प्रीति से रक्षा करते हैं, वैसे राजा धार्मिकों की, अमात्य और भृत्यजन धार्मिक राजा की निरन्तर रक्षा करें ॥२०॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुना राजामात्यभृत्याः परस्परं कथं वर्त्तेरन्नित्याह ॥

Anvay:

हे राजन् ! यथा यद्याः पत्नीर्नोऽच्छाऽऽगमन्ति रक्षन्ति यथा च वयं ता रक्षेम तथा त्वष्टा सुपाणिर्भवान् वीरान् दधातु ॥२०॥

Word-Meaning: - (आ) (यत्) याः (नः) अस्मानस्माकं वा (पत्नीः) भार्याः (गमन्ति) प्राप्नुवन्ति (अच्छा) सम्यक्। अत्र संहितायामिति दीर्घः। (त्वष्टा) दुःखच्छेदकः (सुपाणिः) शोभनहस्तो राजा (दधातु) (वीरान्) शौर्यादिगुणोपेतान्नमात्यादिभृत्यान् ॥२०॥
Connotation: - अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः। यथा पतिव्रताः स्त्रियः स्त्रीव्रताः पतयश्च परस्परेषां प्रीत्या रक्षां विदधति तथा राजा धार्मिकानमात्यभृत्याश्च धार्मिकं राजानं सततं रक्षन्तु ॥२०॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. जशी पतिव्रता स्त्री व स्त्रीव्रती पती परस्परांवर प्रेम करून एकमेकांचे रक्षण करतात तसे राजाने धार्मिकांची, अमात्य व सेवकांनी धार्मिक राजाची निरंतर सेवा करावी. ॥ २० ॥