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मा स्रे॑धत सोमिनो॒ दक्ष॑ता म॒हे कृ॑णु॒ध्वं रा॒य आ॒तुजे॑। त॒रणि॒रिज्ज॑यति॒ क्षेति॒ पुष्य॑ति॒ न दे॒वासः॑ कव॒त्नवे॑ ॥९॥

English Transliteration

mā sredhata somino dakṣatā mahe kṛṇudhvaṁ rāya ātuje | taraṇir ij jayati kṣeti puṣyati na devāsaḥ kavatnave ||

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Pad Path

मा। स्रे॒ध॒त॒। सो॒मि॒नः॒। दक्ष॑त। म॒हे। कृ॒णु॒ध्वम्। रा॒ये। आ॒ऽतुजे॑। त॒रणिः॑। इत्। ज॒य॒ति॒। क्षेति॑। पुष्य॑ति। न। दे॒वासः॑। क॒व॒त्नवे॑ ॥९॥

Rigveda » Mandal:7» Sukta:32» Mantra:9 | Ashtak:5» Adhyay:3» Varga:18» Mantra:4 | Mandal:7» Anuvak:2» Mantra:9


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर मनुष्य किसके तुल्य वर्तें, इस विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥

Word-Meaning: - हे मनुष्यो ! जैसे (देवासः) विद्वान् जन (कवत्नवे) कुत्सित कर्म में व्याप्ति के लिये (न) नहीं प्रवृत्त होते हैं, वैसे (सोमिनः) ओषधी आदि युक्त वा ऐश्वर्यवान् के (आतुजे) करनेवाले (महे) महान् (राये) धन के लिये (मा) मत (स्रेधत) विनाशो (दक्षत) बल पाओ सुकर्म (कृणुध्वम्) करो जो (तरणिः) पुरुषार्थी जन (इत्) ही (जयति) जीतता (क्षेति) जो निरन्तर वसता वा (पुष्यति) जो पुष्ट होता, वे सब बल पावें ॥९॥
Connotation: - इस मन्त्र में उपमालङ्कार है । जो अन्याय से किसी की हिंसा नहीं करते और धर्मात्माओं की वृद्धि करते हैं, वे विद्वान् जन सर्वदा जीतते, धर्म में निवास करते और पुष्ट होते हैं ॥९॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनर्मनुष्याः किंवद्वर्तेरन्नित्याह ॥

Anvay:

हे मनुष्या ! यथा देवासः कवत्नवे न प्रवर्तन्ते तथा सोमिन आतुजे महे राय मा स्रेधत दक्षत सुकर्माणि कृणुध्वं यस्तरणिरिदिव जयति क्षेति पुष्यति ते दक्षत ॥९॥

Word-Meaning: - (मा) निषेधे (स्रेधत) हिंसत (सोमिनः) ओषध्यादियुक्तस्यैश्वर्यवतो वा (दक्षत) बलं प्राप्नुत। अत्र संहितायामिति दीर्घः। (महे) महते (कृणुध्वम्) (राये) धनाय (आतुजे) बलकारकाय (तरणिः) पुरुषार्थी (इत्) इव (जयति) (क्षेति) निवसति (पुष्यति) (न) निषेधे (देवासः) विद्वांसः (कवत्नवे) कुत्सितकर्मव्यापनाय ॥९॥
Connotation: - अत्रोपमालङ्कारः । येऽन्यायेन कञ्चिन्न हिंसन्ति धर्मात्मनां वृद्धिं सततं कुर्वन्ति ते विद्वांसः सदा विजयन्ते धर्म्ये निवसन्ति पुष्टाश्च जायन्ते ॥९॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - या मंत्रात उपमालंकार आहे. जे अन्यायाने कुणाची हत्या करीत नाहीत व धर्मात्म्याची वृद्धी करतात ते विद्वान सदैव जिंकतात व धर्माचे पालन करून पुष्ट होतात. ॥ ९ ॥