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इन्द्र॒ क्रतुं॑ न॒ आ भ॑र पि॒ता पु॒त्रेभ्यो॒ यथा॑। शिक्षा॑ णो अ॒स्मिन्पु॑रुहूत॒ याम॑नि जी॒वा ज्योति॑रशीमहि ॥२६॥

English Transliteration

indra kratuṁ na ā bhara pitā putrebhyo yathā | śikṣā ṇo asmin puruhūta yāmani jīvā jyotir aśīmahi ||

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Pad Path

इन्द्र॑। क्रतु॑म्। नः॒। आ। भ॒र॒। पि॒ता। पु॒त्रेभ्यः॑। यथा॑। शिक्ष॑। नः॒। अ॒स्मिन्। पु॒रु॒ऽहू॒त॒। याम॑नि। जी॒वाः। ज्योतिः॑। अ॒शी॒म॒हि॒ ॥२६॥

Rigveda » Mandal:7» Sukta:32» Mantra:26 | Ashtak:5» Adhyay:3» Varga:21» Mantra:6 | Mandal:7» Anuvak:2» Mantra:26


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

परमेश्वर मनुष्यों को किसके तुल्य प्रार्थना करने योग्य है, इस विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥

Word-Meaning: - हे (पुरुहूत) बहुतों से प्रशंसा को प्राप्त (इन्द्र) परमैश्वर्य के देनेवाले जगदीश्वर भगवन् ! (यथा) जैसे (पुत्रेभ्यः) पुत्रों के लिये (पिता) पिता, वैसे (नः) हम लोगों के लिये (क्रतुम्) धर्मयुक्त बुद्धि को (आ, भर) अच्छे प्रकार धारण कीजिये (अस्मिन्) इस (यामनि) वर्त्तमान समय में (नः) हम लोगों को (शिक्ष) सिखलाओ जिससे (जीवाः) जीव हम लोग (ज्योतिः) विज्ञान को और आपको (अशीमहि) प्राप्त होवें ॥२६॥
Connotation: - इस मन्त्र में उपमालङ्कार है । हे जगदीश्वर ! जैसे पिता हम लोगों को पुष्ट करता है, वैसे आप पालना कीजिये जैसे आप्त विद्वान् जन विद्यार्थियों के लिये शिक्षा देकर सत्य बुद्धि का ग्रहण कराता है, वैसे ही हमको सत्य विज्ञान ग्रहण कराओ जिससे हम लोग सृष्टिविद्या और आपको पाकर सर्वदैव आनन्दित हों ॥२६॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

परमेश्वरो मनुष्यैः किंवत्प्रार्थनीय इत्याह ॥

Anvay:

हे पुरुहूतेन्द्र भगवन् ! यथा पुत्रेभ्यः पिता तथा नः क्रतुमाभराऽस्मिन् यामनि नोऽस्माञ्छिक्ष यतो जीवा वयं ज्योतिर्विज्ञानं त्वां चाशीमहि ॥२६॥

Word-Meaning: - (इन्द्र) परमैश्वर्यप्रद जगदीश्वर (क्रतुम्) धर्म्यां प्रज्ञाम् (नः) अस्मभ्यम् (आ) (भर) (पिता) (पुत्रेभ्यः) (यथा) (शिक्षा) अत्र द्व्यचोऽतस्तिङ इति दीर्घः। (नः) अस्मान् (अस्मिन्) (पुरुहूत) बहुभिः प्रशंसित (यामनि) यान्ति यस्मिँस्तस्मिन् वर्त्तमाने समये (जीवाः) (ज्योतिः) प्रकाशस्वरूपं परमात्मानं त्वाम् (अशीमहि) प्राप्नुयाम ॥२६॥
Connotation: - अत्रोपमालङ्कारः । हे जगदीश्वर ! यथा जनकोऽस्मान् पोषयति तथा त्वं पालय यथाऽऽप्तो विद्वानध्यापको विद्यार्थिभ्यः शिक्षां दत्वा सत्यां प्रज्ञां ग्राहयति तथैवास्मान् सत्यं विज्ञानं ग्राहय यतो वयं सृष्टिविद्यां भवन्तं च प्राप्य सदैवानन्देम ॥२६॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - या मंत्रात उपमालंकार आहे. हे जगदीश्वरा ! जसा पिता आमचे पोषण करतो तसे तूही पालन कर. जसा विद्वान विद्वानांना शिक्षण देऊन सत्य बुद्धीचा स्वीकार करवितो. तसेच सत्य विज्ञान आम्हाला ग्रहण करव. ज्यामुळे आम्ही सृष्टिविद्या व तू दोन्हींना प्राप्त करून सदैव आनंदित राहावे. ॥ २६ ॥