त॒रणि॒रित्सि॑षासति॒ वाजं॒ पुरं॑ध्या यु॒जा। आ व॒ इन्द्रं॑ पुरुहू॒तं न॑मे गि॒रा ने॒मिं तष्टे॑व सु॒द्र्व॑म् ॥२०॥
taraṇir it siṣāsati vājam puraṁdhyā yujā | ā va indram puruhūtaṁ name girā nemiṁ taṣṭeva sudrvam ||
त॒रणिः॑। इत्। सि॒सा॒स॒ति॒। वाज॑म्। पुर॑म्ऽध्या। यु॒जा। आ। वः॒। इन्द्र॑म्। पु॒रु॒ऽहू॒तम्। न॒मे॒। गि॒रा। ने॒मिम्। तष्टा॑ऽइव। सु॒ऽद्र्व॑म् ॥२०॥
SWAMI DAYANAND SARSWATI
फिर राजा और प्रजाजन परस्पर कैसे वर्तें, इस विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥
SWAMI DAYANAND SARSWATI
पुना राजप्रजाजनाः परस्परं कथं वर्तेरन्नित्याह ॥
यस्तरणिरिद्राजा युजा पुरन्ध्या वाजं सिषासति तं वः पुरहूतमिन्द्रं सुद्रवं नेमिं तष्टेव गिरा आ नमे ॥२०॥
MATA SAVITA JOSHI
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