शिक्षे॑य॒मिन्म॑हय॒ते दि॒वेदि॑वे रा॒य आ कु॑हचि॒द्विदे॑। न॒हि त्वद॒न्यन्म॑घवन्न॒ आप्यं॒ वस्यो॒ अस्ति॑ पि॒ता च॒न ॥१९॥
śikṣeyam in mahayate dive-dive rāya ā kuhacidvide | nahi tvad anyan maghavan na āpyaṁ vasyo asti pitā cana ||
शिक्षे॑यम्। इत्। म॒ह॒ऽय॒ते। दि॒वेऽदि॑वे। रा॒यः। आ। कु॒ह॒चि॒त्ऽविदे॑। नहि। त्वत्। अ॒न्यत्। म॒घ॒ऽव॒न्। नः॒। आप्य॑म्। वस्यः॑। अस्ति॑। पि॒ता। च॒न ॥१९॥
SWAMI DAYANAND SARSWATI
फिर प्रजाजनों को क्या चाहने योग्य है, इस विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥
SWAMI DAYANAND SARSWATI
पुनः प्रजाजनैः किमेष्टव्यमित्याह ॥
हे मघवन्निन्द्र ! योऽहं दिवेदिव आ कुहचिद्विदे महयते राये शिक्षेयं त्वदन्यद्रक्षकं न जानीयां यस्त्वं पिता चनासि स त्वमिन्नो वस्य आप्यमन्यन्नह्यस्ति ॥१९॥
MATA SAVITA JOSHI
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