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शिक्षे॑य॒मिन्म॑हय॒ते दि॒वेदि॑वे रा॒य आ कु॑हचि॒द्विदे॑। न॒हि त्वद॒न्यन्म॑घवन्न॒ आप्यं॒ वस्यो॒ अस्ति॑ पि॒ता च॒न ॥१९॥

English Transliteration

śikṣeyam in mahayate dive-dive rāya ā kuhacidvide | nahi tvad anyan maghavan na āpyaṁ vasyo asti pitā cana ||

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Pad Path

शिक्षे॑यम्। इत्। म॒ह॒ऽय॒ते। दि॒वेऽदि॑वे। रा॒यः। आ। कु॒ह॒चि॒त्ऽविदे॑। नहि। त्वत्। अ॒न्यत्। म॒घ॒ऽव॒न्। नः॒। आप्य॑म्। वस्यः॑। अस्ति॑। पि॒ता। च॒न ॥१९॥

Rigveda » Mandal:7» Sukta:32» Mantra:19 | Ashtak:5» Adhyay:3» Varga:20» Mantra:4 | Mandal:7» Anuvak:2» Mantra:19


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर प्रजाजनों को क्या चाहने योग्य है, इस विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥

Word-Meaning: - हे (मघवन्) पूजित धनयुक्त परमैश्वर्य्यवान् ! जो मैं (दिवेदिवे) प्रकाश प्रकाश के लिये (आ, कुहचिद्विदे) जो कहीं भी प्राप्त होता उस (महयते) महान् (राये) धन के लिये (शिक्षेयम्) अच्छी शिक्षा करूँ (त्वत्) तुम से (अन्यत्) और रक्षक को न जानूँ जो आप (पिता) पिता रक्षा करनेवाले (चन) भी हैं इस कारण सो आप (इत्) ही (नः) हमारे (वस्यः) अत्यन्त वश (आप्यम्) प्राप्त होने के योग्य हैं और (नहि) नहीं (अस्ति) है ॥१९॥
Connotation: - वे ही भृत्य उत्तम हैं, जो राजा वा स्वामी को छोड़ के दूसरे को =से नहीं जांचते =माँगते न विना दिये लेते, प्रतिदिन पुरुषार्थ से प्रजा की रक्षा कर और धनवृद्धि करना चाहते हैं ॥१९॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनः प्रजाजनैः किमेष्टव्यमित्याह ॥

Anvay:

हे मघवन्निन्द्र ! योऽहं दिवेदिव आ कुहचिद्विदे महयते राये शिक्षेयं त्वदन्यद्रक्षकं न जानीयां यस्त्वं पिता चनासि स त्वमिन्नो वस्य आप्यमन्यन्नह्यस्ति ॥१९॥

Word-Meaning: - (शिक्षेयम्) सुशिक्षां कुर्याम् (इत्) एव (महयते) महते (दिवेदिवे) (राये) धनाय (आ) समन्तात् (कुहचिद्विदे) यः कुह क्वचिदपि विन्दति तस्मै (नहि) (त्वत्) (अन्यत्) (मघवन्) पूजितधनयुक्त (नः) अस्माकम् (आप्यम्) आप्तुं योग्यम् (वस्यः) वशीयः (अस्ति) (पिता) (चन) अपि ॥१९॥
Connotation: - त एव भृत्या उत्तमाः सन्ति ये राजानं स्वस्वामिनं विहायाऽन्यं न याचन्ते नादत्तं गृह्णन्ति प्रतिदिनं पुरुषार्थेन प्रजारक्षणं धनवृद्धिं च चिकीर्षन्ति ॥१९॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - जे राजा व आपला स्वामी यांना सोडून दुसऱ्याकडे जात नाहीत, दिल्याशिवाय घेत नाहीत. प्रत्येक दिवशी पुरुषार्थाने प्रजेचे रक्षण व धनवृद्धीची इच्छा करतात तेच उत्तम सेवक असतात. ॥ १९ ॥