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त्वं विश्व॑स्य धन॒दा अ॑सि श्रु॒तो य ईं॒ भव॑न्त्या॒जयः॑। तवा॒यं विश्वः॑ पुरुहूत॒ पार्थि॑वोऽव॒स्युर्नाम॑ भिक्षते ॥१७॥

English Transliteration

tvaṁ viśvasya dhanadā asi śruto ya īm bhavanty ājayaḥ | tavāyaṁ viśvaḥ puruhūta pārthivo vasyur nāma bhikṣate ||

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Pad Path

त्वम्। विश्व॑स्य। ध॒न॒ऽदाः। अ॒सि॒। श्रु॒तः। ये। ई॒म्। भव॑न्ति। आ॒जयः॑। तव॑। अ॒यम्। विश्वः॑। पु॒रु॒ऽहू॒त॒। पार्थि॑वः। अ॒व॒स्युः। नाम॑। भि॒क्ष॒ते॒ ॥१७॥

Rigveda » Mandal:7» Sukta:32» Mantra:17 | Ashtak:5» Adhyay:3» Varga:20» Mantra:2 | Mandal:7» Anuvak:2» Mantra:17


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर वह राजा कैसा हो, इस विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥

Word-Meaning: - हे (पुरुहूत) बहुतों से प्रशंसा को प्राप्त स्वीकार किये हुए राजन् ! जो (श्रुतः) प्रसिद्ध कीर्तियुक्त (पार्थिवः) पृथिवी पर विदित (त्वम्) आप (विश्वस्य) समग्र राज्य के (धनदाः) धन देनेवाले (असि) हैं जिन (तव) आपका (अयम्) यह (विश्वः) सर्व (अवस्युः) अपने को रक्षा चाहनेवाला जन (नाम) प्रसिद्ध तुम से रक्षा को (भिक्षते) माँगता है (ये) जो (ईम्) सब ओर से (आजयः) संग्राम (भवन्ति) होते हैं, उनमें सब तुम्हारे सहाय को चाहते हैं, उनकी आप निरन्तर रक्षा करें ॥१७॥
Connotation: - जो राजा संग्राम में विजय करनेवालों को बहुत धन देता है, उसका पराजय कभी नहीं होता है, जो प्रजाजन रक्षा चाहें उसकी रक्षा जो निरन्तर करता है, वही पुण्यकीर्ति होता है ॥१७॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनः स राजा कीदृशो भवेदित्याह ॥

Anvay:

हे पुरुहूत ! यः श्रुतः पार्थिवस्त्वं विश्वस्य धनदा असि यस्य तवायं विश्वोऽवस्युर्जनो नाम त्वद्रक्षणं भिक्षते य ईमाजयो भवन्ति तत्र सर्वे त्वत्सहायमिच्छन्ति ताँस्त्वं सततं रक्ष ॥१७॥

Word-Meaning: - (त्वम्) (विश्वस्य) समग्रस्य राष्ट्रस्य (धनदाः) यो धनं ददाति सः (असि) (श्रुतः) प्रसिद्धकीर्तिः (ये) (ईम्) सर्वतः (भवन्ति) (आजयः) सङ्ग्रामाः (तव) (अयम्) (विश्वः) सर्वो जनः (पुरुहूत) बहुभिः प्रशंसित स्वीकृत (पार्थिवः) पृथिव्यां विदितः (अवस्युः) आत्मनोऽवो रक्षामिच्छुः (नाम) प्रसिद्धं रक्षणम् (भिक्षते) याचते ॥१७॥
Connotation: - यो राजा सङ्ग्रामे विजयकर्तृभ्यः पुष्कलं धनं ददाति तस्य पराजयः कदापि न भवति यः प्रजाजनो रक्षणमिच्छेत्तस्य रक्षां यः सततं करोति स एव पुण्यकीर्तिर्भवति ॥१७॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - जो राजा युद्धात विजय प्राप्त करणाऱ्यांना पुष्कळ धन देतो. त्याचा कधी पराजय होत नाही. जो प्रजेचे निरंतर रक्षण करतो तोच चांगली कीर्ती मिळवितो. ॥ १७ ॥