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मन्त्र॒मख॑र्वं॒ सुधि॑तं सु॒पेश॑सं॒ दधा॑त य॒ज्ञिये॒ष्वा। पू॒र्वीश्च॒न प्रसि॑तयस्तरन्ति॒ तं य इन्द्रे॒ कर्म॑णा॒ भुव॑त् ॥१३॥

English Transliteration

mantram akharvaṁ sudhitaṁ supeśasaṁ dadhāta yajñiyeṣv ā | pūrvīś cana prasitayas taranti taṁ ya indre karmaṇā bhuvat ||

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Pad Path

मन्त्र॑म्। अख॑र्वम्। सुऽधि॑तम्। सु॒ऽपेश॑सम्। दधा॑त। य॒ज्ञिये॑षु। आ। पू॒र्वीः। च॒न। प्रऽसि॑तयः। त॒र॒न्ति॒। तम्। यः। इन्द्रे॑। कर्म॑णा। भुव॑त् ॥१३॥

Rigveda » Mandal:7» Sukta:32» Mantra:13 | Ashtak:5» Adhyay:3» Varga:19» Mantra:3 | Mandal:7» Anuvak:2» Mantra:13


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर प्रजा कैसे राजा के अनुकूल होती है, इस विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥

Word-Meaning: - जो (यज्ञियेषु) राजपालनादि कामों से सङ्ग रखते हुए व्यवहारों में (अखर्वम्) पूर्ण (सुधितम्) सुन्दरता से स्थापित (सुपेशसम्) सुरूपम् (मन्त्रम्) विचार को (दधात) धारण करें। (यः) जो (कर्मणा) उत्तम क्रिया से (इन्द्रे) राजा के निमित्त (भुवत्) प्रसिद्ध हो (तम्) उसको (पूर्वीः) प्राचीन (प्रसितयः) प्रकृष्ट प्रेमबन्धन (चन) भी (आ, तरन्ति) प्राप्त होते हैं ॥१३॥
Connotation: - जिन राजाओं का गूढ़ विचार सर्वहित करना और श्रेष्ठ यत्न होता है, वे अच्छी क्रिया से सब प्रजाजनों को प्रेमास्पद से प्रसन्न कर सकते हैं ॥१३॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनः प्रजाः कीदृशं राजानमनुकूला भवन्तीत्याह ॥

Anvay:

ये यज्ञियेष्वखर्वं सुधितं सुपेशसं मन्त्रं दधात यः कर्मणेन्द्रे भुवत्तं पूर्वीः प्रसितयश्चना तरन्ति ॥१३॥

Word-Meaning: - (मन्त्रम्) विचारम् (अखर्वम्) अनल्पं पूर्णम् (सुधितम्) सुष्ठुहितम् (सुपेशसम्) सुरूपम् (दधात) (यज्ञियेषु) राजपालनादिसङ्गतेषु व्यवहारेषु (आ) (पूर्वीः) प्राचीनाः (चन) अपि (प्रसितयः) प्रकृष्टानि प्रेमबन्धनानि (तरन्ति) प्राप्नुवन्ति (तम्) (यः) (इन्द्रे) राजनि (सति) (कर्मणा) सत्क्रियया (भुवत्) भवेत् ॥१३॥
Connotation: - येषां राज्ञां गूढो विचारः सर्वहितकरणं श्रेष्ठप्रयत्नश्च भवति ते सत्क्रियया सर्वाः प्रजाः प्रेमास्पदेन रञ्जयितुं शक्नुवन्ति ॥१३॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - ज्या राजांचे गूढ विचार सर्वहितकारी व प्रयत्न श्रेष्ठ असतो. ते चांगले कर्म करून सर्व प्रजेला प्रेमाने प्रसन्न करू शकतात. ॥ १३ ॥