इन्द्रं॒ वाणी॒रनु॑त्तमन्युमे॒व स॒त्रा राजा॑नं दधिरे॒ सह॑ध्यै। हर्य॑श्वाय बर्हया॒ समा॒पीन् ॥१२॥
indraṁ vāṇīr anuttamanyum eva satrā rājānaṁ dadhire sahadhyai | haryaśvāya barhayā sam āpīn ||
इन्द्र॑म्। वाणीः॑। अनु॑त्तऽमन्युम्। ए॒व। स॒त्रा। राजा॑नम्। द॒धि॒रे॒। सह॑ध्यै। हरि॑ऽअश्वाय। ब॒र्ह॒य॒। सम्। आ॒पीन् ॥१२॥
SWAMI DAYANAND SARSWATI
फिर कैसे मनुष्य को सत्य वाणी सेवती है, इस विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥
SWAMI DAYANAND SARSWATI
पुनः कीदृशं नरं सत्या वाक्सेवत इत्याह ॥
हे विद्वन् ! या वाणीः सत्राऽनुत्तमन्युं राजानमिन्द्रं सहध्यै दधिरे आपीन् सन् दधिरे तस्मा एव हर्यश्वाय सर्वा विद्या बर्हय ॥१२॥
MATA SAVITA JOSHI
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