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अ॒ग्निं वो॑ दे॒वम॒ग्निभिः॑ स॒जोषा॒ यजि॑ष्ठं दू॒तम॑ध्व॒रे कृ॑णुध्वम्। यो मर्त्ये॑षु॒ निध्रु॑विर्ऋ॒तावा॒ तपु॑र्मूर्धा घृ॒तान्नः॑ पाव॒कः ॥१॥

English Transliteration

agniṁ vo devam agnibhiḥ sajoṣā yajiṣṭhaṁ dūtam adhvare kṛṇudhvam | yo martyeṣu nidhruvir ṛtāvā tapurmūrdhā ghṛtānnaḥ pāvakaḥ ||

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Pad Path

अ॒ग्निम्। वः॒। दे॒वम्। अ॒ग्निऽभिः॑। स॒ऽजोषाः॑। यजि॑ष्ठम्। दू॒तम्। अ॒ध्व॒रे। कृ॒णु॒ध्व॒म्। यः। मर्त्ये॑षु। निऽध्रु॑विः। ऋ॒तऽवा॑। तपुः॑ऽमूर्धा। घृ॒तऽअ॑न्नः। पा॒व॒कः ॥१॥

Rigveda » Mandal:7» Sukta:3» Mantra:1 | Ashtak:5» Adhyay:2» Varga:3» Mantra:1 | Mandal:7» Anuvak:1» Mantra:1


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

अब सातवें मण्डल के तृतीय सूक्त का आरम्भ है। इसके प्रथम मन्त्र में विद्युत् कैसी है, इस विषय को कहते हैं।

Word-Meaning: - हे मनुष्यो ! (यः) जो (वः) तुम्हारा (सजोषाः) एक सी प्रीति को सेवनेवाला (मर्त्येषु) मरणधर्म सहित मनुष्यादिकों में (निध्रुविः) निरन्तर स्थित (ऋतावा) सत्य वा जल का विभाग करनेवाला (तपुर्मूर्धा) शिर के तुल्य उत्कृष्ट वा उत्तम जिसका ताप है (घृतान्नः) अन्न के तुल्य प्रकाशित जिसका घृत है (पावकः) जो पवित्र करनेवाला है उस (अध्वरे) सूर्य आदि के साथ (यजिष्ठम्) अत्यन्त संगति करनेवाले (दूतम्) दूत के तुल्य तार द्वारा शीघ्र समाचार पहुँचानेवाले (अग्निम्, देवम्) उत्तम गुण, कर्म और स्वभाव युक्त अग्नि को तुम लोग (कृणुध्वम्) प्रकट करो ॥१॥
Connotation: - हे विद्वानो ! जो विद्युत् सर्वत्र स्थित, विभाग करनेवाली प्रकाशित गुणों से युक्त साधनों से प्रकट हुई वर्त्तमान है, उसी को तुम लोग दूत के तुल्य बना कर युद्धादि कार्य्यों को सिद्ध करो ॥१॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

अथ कीदृशी विद्युदस्तीत्याह ॥

Anvay:

हे मनुष्या ! यो वस्सजोषा मर्त्येषु निध्रुविर्ऋतावा तपुर्मूर्धा घृतान्नः पावकोऽस्ति तमध्वरेऽग्निभिस्सह यजिष्ठं दूतमग्निं देवं यूयं कृणुध्वम् ॥१॥

Word-Meaning: - (अग्निम्) पावकम् (वः) युष्माकम् (देवम्) दिव्यगुणकर्मस्वभावम् (अग्निभिः) सूर्य्यादिभिः (सजोषाः) समानसेवी (यजिष्ठम्) अतिशयेन सङ्गन्तारम् (दूतम्) दूतवत्सद्यः समाचारप्रापकम् (अध्वरे) अहिंसनीये शिल्पव्यवहारे (कृणुध्वम्) (यः) (मर्त्येषु) मरणधर्मेषु मनुष्यादिषु (निध्रुविः) नितरां ध्रुवः (ऋतावा) सत्यस्य जलस्य वा विभाजकः (तपुर्मूर्धा) तपुस्तापो मूर्द्धेवोत्कृष्टो यस्य (घृतान्नः) घृतमाज्यं प्रदीपनमन्नमिव प्रदीपकं यस्य (पावकः) पवित्रकरः ॥१॥
Connotation: - हे विद्वांसो ! या विद्युत्सर्वत्र स्थिता विभाजिका प्रदीप्तगुणा साधनजन्या वर्त्तते तामेव यूयं दूतमिव कृत्वा सङ्ग्रामादीनि कार्याणि साध्नुत ॥१॥
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MATA SAVITA JOSHI

या सूक्तात अग्नी, विद्वान, राजा व प्रजेच्या कृत्याचे वर्णन असल्यामुळे या सूक्ताच्या अर्थाची पूर्व सूक्तार्थाबरोबर संगती जाणावी.

Word-Meaning: - N/A
Connotation: - हे विद्वानांनो! जी विद्युत सर्वत्र स्थित, विभाजन करणारी, प्रकाशित होणारी, साधनांनी प्रकट होणारी असते तिलाच तुम्ही दूताप्रमाणे समजून युद्ध इत्यादी कार्यात प्रयुक्त करा. ॥ १ ॥