Go To Mantra

अ॒यं सोम॑ इन्द्र॒ तुभ्यं॑ सुन्व॒ आ तु प्र या॑हि हरिव॒स्तदो॑काः। पिबा॒ त्व१॒॑स्य सुषु॑तस्य॒ चारो॒र्ददो॑ म॒घानि॑ मघवन्निया॒नः ॥१॥

English Transliteration

ayaṁ soma indra tubhyaṁ sunva ā tu pra yāhi harivas tadokāḥ | pibā tv asya suṣutasya cāror dado maghāni maghavann iyānaḥ ||

Mantra Audio
Pad Path

अ॒यम्। सोमः॑। इ॒न्द्र॒। तुभ्य॑म्। सु॒न्वे॒। आ। तु। प्र। या॒हि॒। ह॒रि॒ऽवः॒। तत्ऽओ॑काः। पिब॑। तु। अ॒स्य। सुऽसु॑तस्य। चारोः॑। ददः॑। म॒घानि॑। म॒घ॒ऽव॒न्। इ॒या॒नः ॥१॥

Rigveda » Mandal:7» Sukta:29» Mantra:1 | Ashtak:5» Adhyay:3» Varga:13» Mantra:1 | Mandal:7» Anuvak:2» Mantra:1


Reads times

SWAMI DAYANAND SARSWATI

अब पाँच ऋचावाले उनतीसवें सूक्त का आरम्भ है, इसके प्रथम मन्त्र में किसको कौन बनाना चाहिये, इस विषय को कहते हैं ॥

Word-Meaning: - हे (मघवन्) बहुधन और (हरिवः) प्रशस्त मनुष्ययुक्त (इन्द्र) दारिद्र्य विनाशनेवाले ! जो (अयम्) यह (सोमः) ओषधियों का रस है जिसको मैं (तु) तो (तुभ्यम्) तुम्हारे लिये (प्र, सुन्वे) खींचता हूँ उसको तुम (पिब) पीओ (तदोकाः) वह श्रेष्ठ गृह जिसका है ऐसे होते हुए (आ, याहि) आओ (अस्य) इस (सुषुतस्य) सुन्दर निर्माण किये और (चारोः) सुन्दर जन के (मघानि) धनों को (इयानः) प्राप्त होते हुए हमारे लिये (ददः) देओ ॥१॥
Connotation: - जो मनुष्य वैद्यकशास्त्र की रीति से उत्पन्न किये हुए सर्वरोग हरने और बुद्धि बल के देनेवाले, बड़ी-बड़ी ओषधियों के रस को पीते हैं, वे सुख और ऐश्वर्य पाते हैं ॥१॥
Reads times

SWAMI DAYANAND SARSWATI

अथ कस्मै को निर्मातव्य इत्याह ॥

Anvay:

हे मघवन् हरिव इन्द्र ! योऽयं सोमोऽस्ति यमहं तु तुभ्यं प्रसुन्वे तं त्वं पिब तदोकाः सन्नायाहि अस्य सुषुतस्य चारोस्तु मघानीयानोऽस्मभ्यं ददः ॥१॥

Word-Meaning: - (अयम्) (सोमः) ओषधिरसः (इन्द्र) दारिद्र्यविदारक (तुभ्यम्) (सुन्वे) (आ) (तु) (प्र) (याहि) गच्छ (हरिवः) प्रशस्तैर्मनुष्यैर्युक्त (तदोकाः) तच्छ्रेष्ठमोको गृहं यस्य सः (पिब) अत्र द्व्यचोऽतस्तिङ इति दीर्घः। (तु) (अस्य) (सुषुतस्य) सुष्ठु निमित्तस्य (चारोः) सुन्दरस्य (ददः) देहि (मघानि) धनानि (मघवन्) बहुधनयुक्त (इयानः) प्राप्नुवन् ॥१॥
Connotation: - ये मनुष्या वैद्यकशास्त्ररीत्या निष्पादितं सर्वरोगहरं बुद्धिबलप्रदं महौषधिरसं पिबन्ति ते सुखैश्वर्यमाप्नुवन्ति ॥१॥
Reads times

MATA SAVITA JOSHI

या सूक्तात इंद्र, सोमपान, अध्यापक, अध्येता, परीक्षक व विद्या देणाऱ्यांच्या गुणकर्माचे वर्णन असल्यामुळे या सूक्ताच्या अर्थाची पूर्व सूक्तार्थाबरोबर संगती जाणावी.

Word-Meaning: - N/A
Connotation: - जी माणसे वैद्यकशास्त्रानुसार निष्पादित केलेले सर्व रोगहारक, बुद्धिबलप्रद महौषधी रसांचे प्राशन करतात ती सुख व ऐश्वर्य भोगतात. ॥ १ ॥