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श॒तं ते॑ शिप्रिन्नू॒तयः॑ सु॒दासे॑ स॒हस्रं॒ शंसा॑ उ॒त रा॒तिर॑स्तु। ज॒हि वध॑र्व॒नुषो॒ मर्त्य॑स्या॒स्मे द्यु॒म्नमधि॒ रत्नं॑ च धेहि ॥३॥

English Transliteration

śataṁ te śiprinn ūtayaḥ sudāse sahasraṁ śaṁsā uta rātir astu | jahi vadhar vanuṣo martyasyāsme dyumnam adhi ratnaṁ ca dhehi ||

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Pad Path

श॒तम्। ते॒। शि॒प्रि॒न्। ऊ॒तयः॑। सु॒ऽदासे॑। स॒हस्र॑म्। शंसाः॑। उ॒त। रा॒तिः। अ॒स्तु॒। ज॒हि। वधः॑। व॒नुषः॑। मर्त्य॑स्य। अ॒स्मे इति॑। द्यु॒म्नम्। अधि॑। रत्न॑म्। च॒। धे॒हि॒ ॥३॥

Rigveda » Mandal:7» Sukta:25» Mantra:3 | Ashtak:5» Adhyay:3» Varga:9» Mantra:3 | Mandal:7» Anuvak:2» Mantra:3


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर वह राजा क्या करे, इस विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥

Word-Meaning: - हे (शिप्रिन्) अच्छे मुखवाले राजा ! (ते) आपके (वनुषः) याचना करते हुए पीड़ित मनुष्य की (शतम्) सैकड़ों (ऊतयः) रक्षा आदि क्रिया और (सहस्रम्) असंख्य (शंसाः) प्रशंसा हों (उत) और (सुदासे) जो उत्तमता से देता है उसके लिये (रातिः) दान (अस्तु) हो आप (वनुषः) अधर्म से माँगनेवाले पाखण्डी (मर्त्यस्य) मनुष्य की (वधः) ताड़ना को (जहि) हनो, नष्ट करो तथा (अस्मे) हम लोगों में (द्युम्नम्) धर्मयुक्त यश और (रत्नं च) रमणीय धन भी (अधि, धेहि) अधिकता से धारण करो ॥३॥
Connotation: - हे राजा ! आप सैकड़ों वा सहस्रों प्रकारों से प्रजा की पालना और सुपात्रों को देना, दुष्टों का बन्धन, प्रजाजनों में कीर्ति बढ़ाना और धन को निरन्तर विधान करो, जिससे सब सुखी हों ॥३॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनः स राजा किं कुर्यादित्याह ॥

Anvay:

हे शिप्रिन् राजँस्ते तव वनुषो मर्त्यस्य शतमूतयः सहस्रं शंसाः सन्तूत सुदासे रातिरस्तु त्वमधर्म्येण वनुषः पाखण्डिनो मर्त्त्यस्य वधो जह्यस्मे द्युम्नं रत्नं चाधि धेहि ॥३॥

Word-Meaning: - (शतम्) (ते) तव (शिप्रिन्) सुमुख (ऊतयः) रक्षाद्याः क्रियाः (सुदासे) यः सुष्ठु ददाति तस्मै (सहस्रम्) असंख्याः (शंसाः) प्रशंसाः (उत) (रातिः) दानम् (अस्तु) (जहि) (वधः) ताडनम् (वनुषः) याचमानस्य (मर्त्यस्य) मनुष्यस्य पीडितस्य मर्तस्य (अस्मे) अस्मासु (द्युम्नम्) धर्म्यं यशः (अधि) उपरि (रत्नम्) रमणीयं धनम् (च) धेहि ॥३॥
Connotation: - हे राजन् ! भवाञ्छतशः सहस्रशः प्रकारैः प्रजापालनं सुपात्रदानं दुष्टवधं प्रजासु कीर्त्तिवर्धनं धनं च सततं त्वं विधेहि यतः सर्वे सुखिनः स्युः ॥३॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - हे राजा ! तू शेकडो, हजारो प्रकारे प्रजेचे पालन, सुपात्रांना दान, दुष्टांना बंधन, प्रजेत कीर्तिवर्धन व धनाचे निरंतर व्यवस्थापन करून सर्वांना सुखी कर. ॥ ३ ॥