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ए॒ष स्तोमो॑ म॒ह उ॒ग्राय॒ वाहे॑ धु॒री॒३॒॑वात्यो॒ न वा॒जय॑न्नधायि। इन्द्र॑ त्वा॒यम॒र्क ई॑ट्टे॒ वसू॑नां दि॒वी॑व॒ द्यामधि॑ नः॒ श्रोम॑तं धाः ॥५॥

English Transliteration

eṣa stomo maha ugrāya vāhe dhurīvātyo na vājayann adhāyi | indra tvāyam arka īṭṭe vasūnāṁ divīva dyām adhi naḥ śromataṁ dhāḥ ||

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Pad Path

ए॒षः। स्तोमः॑। म॒हे। उ॒ग्राय॑। वाहे॑। धु॒रिऽइ॑व। अत्यः॑। न। वा॒जय॑न्। अ॒धा॒यि॒। इन्द्र॑। त्वा॒। अ॒यम्। अ॒र्कः। ई॒ट्टे॒। वसू॑नाम्। दि॒विऽइ॑व। द्याम्। अधि॑। नः॒। श्रोम॑तम्। धाः ॥५॥

Rigveda » Mandal:7» Sukta:24» Mantra:5 | Ashtak:5» Adhyay:3» Varga:8» Mantra:5 | Mandal:7» Anuvak:2» Mantra:5


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर विद्वान् किसके तुल्य क्या करे, इस विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥

Word-Meaning: - हे (इन्द्र) परमैश्वर्य के देनेवाले ! जिन आपने (वाहे) सब को सुख की प्राप्ति करानेवाले (महे) महान् (उग्राय) तेजस्वी के लिये (धुरीव) धुरी में जैसे रथ आदि के अवयव लगे हुए जाते हैं, वैसे (अत्यः) शीघ्र चलनेवाले घोड़े के (न) समान (वाजयन्) वेग कराते हुए (एषः) यह (स्तोमः) श्लाघनीय स्तुति करने योग्य व्यवहार (अधायि) धारण किया जो (अयम्) यह (अर्कः) सत्कार करने योग्य (वसूनाम्) पृथिवी आदि के बीच (दिवीव) वा सूर्य ज्योति के बीच (त्वा) आपको (ईट्टे) ऐश्वर्य देता है, वह आप (नः) हम लोगों को (द्याम्) प्रकाश और (श्रोमतम्) सुनने योग्य को (अधि, धाः) अधिकता से धारण करो ॥५॥
Connotation: - इस मन्त्र में उपमालङ्कार है । हे मनुष्यो ! जो विद्वान् तेजस्वियों के लिये प्रशंसा धारण करता, वह धुरी के समान सुख का आधार और घोड़े के समान वेगवान् हो बहुत लक्ष्मी पाकर सूर्य के समान इस संसार में प्रकाशित होता है ॥५॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनर्विद्वान् किंवत् किं कुर्यादित्याह ॥

Anvay:

हे इन्द्र ! येन त्वया वाहे मह उग्राय धुरीवात्यो न वाजयन्नेष स्तोमोऽधायि योऽयमर्को वसूनां दिवीव त्वेट्टे स त्वं नो द्यां श्रोमतं चाधि धाः ॥५॥

Word-Meaning: - (एषः) (स्तोमः) श्लाघ्यो व्यवहारः (महे) महते (उग्राय) तेजस्विने (वाहे) सर्वान्सुखं प्रापयित्रे (धुरीव) सर्वे यानावयवा लग्नाः सन्तो गच्छन्ति (अत्यः) अश्वः (न) इव (वाजयन्) वेगं कारयन् (अधायि) ध्रियते (इन्द्र) परमैश्वर्यप्रद (त्वा) त्वाम् (अयम्) विद्वान् (अर्कः) सत्कर्त्तव्यः (ईट्टे) ऐश्वर्यं प्रयच्छति (वसूनाम्) पृथिव्यादीनां मध्ये (दिवीव) सूर्यज्योतिषीव (द्याम्) प्रकाशम् (अधि) (नः) अस्माकम् (श्रोमतम्) श्रोतव्यं विज्ञानमन्नादिकं वा (धाः) धेहि ॥५॥
Connotation: - अत्रोपमालङ्कारः । हे मनुष्या ! यो विद्वान् तेजस्विभ्यः प्रशंसां धरति स धूर्वत्सर्वसुखाधारो वाजिवद्वेगवान् भूत्वा पुष्कलां श्रियं प्राप्य सूर्य इवात्र भ्राजते ॥५॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - या मंत्रात उपमालंकार आहे. हे माणसांनो! जो विद्वान तेजस्वी लोकांची प्रशंसा करतो तो आसाप्रमाणे सुखांचा आधार असतो व घोड्याप्रमाणे वेगवान असून पुष्कळ धन प्राप्त करून सूर्याप्रमाणे या जगात प्रकाशित होतो. ॥ ५ ॥