Go To Mantra

आप॑श्चित्पिप्युः स्त॒र्यो॒३॒॑ न गावो॒ नक्ष॑न्नृ॒तं ज॑रि॒तार॑स्त इन्द्र। या॒हि वा॒युर्न नि॒युतो॑ नो॒ अच्छा॒ त्वं हि धी॒भिर्दय॑से॒ नि वाजा॑न् ॥४॥

English Transliteration

āpaś cit pipyuḥ staryo na gāvo nakṣann ṛtaṁ jaritāras ta indra | yāhi vāyur na niyuto no acchā tvaṁ hi dhībhir dayase vi vājān ||

Pad Path

आपः॑। चि॒त्। पि॒प्युः॒। स्त॒र्यः॑। न। गावः॑। नक्ष॑न्। ऋ॒तम्। ज॒रि॒तारः॑। ते॒। इ॒न्द्र॒। या॒हि। वा॒युः। न। नि॒ऽयुतः॑। नः॒। अच्छ॑। त्वम्। हि। धी॒ऽभिः। दय॑से। वि। वाजा॑न् ॥४॥

Rigveda » Mandal:7» Sukta:23» Mantra:4 | Ashtak:5» Adhyay:3» Varga:7» Mantra:4 | Mandal:7» Anuvak:2» Mantra:4


Reads times

SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर सेनापति का ईश वीर कैसे युद्ध करनेवालों को रक्खे, इस विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥

Word-Meaning: - हे (इन्द्र) सर्व सेनापति ! जो वीरजन (आपः) जलों के (चित्) समान सेनाजनों को चलाते हुए (स्तर्यः) ढँपी हुई (गावः) किरणों के (न) समान (पिप्युः) बढ़ावें और (ते) आप की (जरितारः) स्तुति करनेवाले जन (ऋतम्) सत्य को (नक्षन्) व्याप्त होते हैं उनके साथ (वायुः) पवन के (न) समान (त्वम्) आप (याहि) जाइये (हि) जिससे (धीभिः) उत्तम क्रियाओं से (नियुतः) निश्चित किये हुए (वाजान्) वेगवान् (नः) हम लोगों की (अच्छ) अच्छे प्रकार (वि, दयसे) विशेषता से दया करते हो, इससे हम लोग तुम्हारी आज्ञा को न उल्लङ्घन करें ॥४॥
Connotation: - इस मन्त्र में उपमालङ्कार है । हे सेनाध्यक्ष पति ! यदि आप सुरक्षित शूरवीर जनों की अच्छे प्रकार रक्षा कर अच्छी शिक्षा देकर और कृपा से उन्नति कर शत्रुओं के साथ युद्ध करावें तो ये सूर्य की किरणों के समान तेजस्वी होकर पवन के समान शीघ्र जा शत्रुओं को शीघ्र विनाशें ॥४॥
Reads times

SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनः सेनापतीशः कीदृशान् योद्धॄन् रक्षेदित्याह ॥

Anvay:

हे इन्द्र ! ये वीरा आपश्चिद्गमयन्तस्तर्यो गावो न पिप्युस्ते जरितार ऋतं नक्षंस्तैस्सह वायुर्न त्वं याहि हि त्वं धीभिर्नियुतो वाजान्नोऽच्छ विदयसे तस्माद्वयं तवाज्ञां नोल्लङ्घयामः ॥४॥

Word-Meaning: - (आपः) जलानि (चित्) इव (पिप्युः) वर्धयेयुः (स्तर्यः) आच्छादिताः (न) इव (गावः) किरणाः (नक्षन्) व्याप्नुवन्ति (ऋतम्) सत्यम् (जरितारः) स्तावकाः (ते) तव (इन्द्र) सर्वसेनेश (याहि) (वायुः) पवनः (न) इव (नियुतः) निश्चितान् (नः) अस्मान् (अच्छ) अत्र संहितायामिति दीर्घः। (त्वम्) (हि) यतः (धीभिः) प्रज्ञाभिः (दयसे) कृपां करोषि (वि) (वाजान्) वेगवतः ॥४॥
Connotation: - अत्रोपमालङ्कारः । हे सेनाध्यक्षेश ! यदि भवान्सुपरीक्षिताञ्छूरवीरान् संरक्ष्य सुशिक्षाय कृपयोन्नीय शत्रुभिस्सह योधयेत्तर्ह्येते सूर्यकिरणवत्तेजस्विनो भूत्वा वायुवत्सद्यो गत्वा शत्रूँस्तूर्णं विनाशयेयुः ॥४॥
Reads times

MATA SAVITA JOSHI

N/A

Word-Meaning: - N/A
Connotation: - या मंत्रात उपमालंकार आहे. हे सेनाध्यक्षा ! जर तू सुपरीक्षित शूरवीरांचे चांगल्या प्रकारे रक्षण करून त्यांच्यावर कृपा करून शत्रूबरोबर युद्ध करविलेस तर सूर्याच्या किरणांप्रमाणे तेजस्वी बनून वायूप्रमाणे शीघ्रतेने शत्रूंचा तात्काळ विनाश करशील. ॥ ४ ॥