उदु॒ ब्रह्मा॑ण्यैरत श्रव॒स्येन्द्रं॑ सम॒र्ये म॑हया वसिष्ठ। आ यो विश्वा॑नि॒ शव॑सा त॒तानो॑पश्रो॒ता म॒ ईव॑तो॒ वचां॑सि ॥१॥
ud u brahmāṇy airata śravasyendraṁ samarye mahayā vasiṣṭha | ā yo viśvāni śavasā tatānopaśrotā ma īvato vacāṁsi ||
उत्। ऊँ॒ इति॑। ब्रह्मा॑णि। ऐ॒र॒त॒। श्र॒व॒स्या। इन्द्र॑म्। स॒ऽम॒र्ये। म॒ह॒य॒। व॒सि॒ष्ठ॒। आ। यः। विश्वा॑नि। शव॑सा। त॒तान॑। उ॒प॒ऽश्रो॒ता। मे॒। ईव॑तः। वचां॑सि ॥१॥
SWAMI DAYANAND SARSWATI
अब छः ऋचावाले तेईसवें सूक्त का आरम्भ है, उसके प्रथम मन्त्र में प्रबन्धकर्ता जन क्या क्या करें, इस विषय को कहते हैं ॥
SWAMI DAYANAND SARSWATI
अथ उपस्थितसङ्ग्रामे प्रबन्धकर्तारः किं किं कुर्य्युरित्याह ॥
हे वसिष्ठ विद्वन् राजन् ! यथा विद्वांसः श्रवस्या ब्रह्माण्युदैरत तथेन्द्रमु समर्ये महय। य उपश्रोता शवसेवतो मे विश्वानि वचांस्या ततान तमप्युपदेष्टारं समर्ये महय ॥१॥
MATA SAVITA JOSHI
या सूक्तात इंद्र, सेना, योद्धे व सर्व सेनापतींच्या कार्याचे वर्णन असल्यामुळे या सूक्ताच्या अर्थाची पूर्व सूक्तार्थाबरोबर संगती जाणावी.