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उदु॒ ब्रह्मा॑ण्यैरत श्रव॒स्येन्द्रं॑ सम॒र्ये म॑हया वसिष्ठ। आ यो विश्वा॑नि॒ शव॑सा त॒तानो॑पश्रो॒ता म॒ ईव॑तो॒ वचां॑सि ॥१॥

English Transliteration

ud u brahmāṇy airata śravasyendraṁ samarye mahayā vasiṣṭha | ā yo viśvāni śavasā tatānopaśrotā ma īvato vacāṁsi ||

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Pad Path

उत्। ऊँ॒ इति॑। ब्रह्मा॑णि। ऐ॒र॒त॒। श्र॒व॒स्या। इन्द्र॑म्। स॒ऽम॒र्ये। म॒ह॒य॒। व॒सि॒ष्ठ॒। आ। यः। विश्वा॑नि। शव॑सा। त॒तान॑। उ॒प॒ऽश्रो॒ता। मे॒। ईव॑तः। वचां॑सि ॥१॥

Rigveda » Mandal:7» Sukta:23» Mantra:1 | Ashtak:5» Adhyay:3» Varga:7» Mantra:1 | Mandal:7» Anuvak:2» Mantra:1


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

अब छः ऋचावाले तेईसवें सूक्त का आरम्भ है, उसके प्रथम मन्त्र में प्रबन्धकर्ता जन क्या क्या करें, इस विषय को कहते हैं ॥

Word-Meaning: - हे (वसिष्ठ) अतीव बसनेवाले विद्वान् राजा ! जैसे विद्वान् जन (श्रवस्या) अन्न वा श्रवणों के बीच उत्पन्न हुए (ब्रह्माणि) धन-धान्यों को (उत्, ऐरत) प्रेरणा देते हैं, वैसे (इन्द्रम्) शूरवीरजन का (उ) तर्क वितर्क से (समर्ये) समर में (महय) सत्कार करो (यः) जो (उपश्रोता) ऊपर से देखनेवाला अच्छे सुनता है वह (शवसा) बल से (ईवतः) समीप जाते हुए (मे) मेरे (विश्वानि) सब (वचांसि) वचनों को (आ, ततान) अच्छे प्रकार विस्तारता है, उस उपदेशक का भी समर में सत्कार करो ॥१॥
Connotation: - इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। हे राजन् ! जब संग्राम उपस्थित हो तब बहुत धन अन्न शस्त्र अस्त्र सेनाओं के अङ्ग और इनकी रक्षा करने तथा अच्छे प्रबन्ध करनेवालों को आप प्रेरणा देओ, आप्त और उपदेष्टा जनों को रक्खो, योद्धा जन उत्साहित और सुरक्षित हुए शीघ्र विजय करें ॥१॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

अथ उपस्थितसङ्ग्रामे प्रबन्धकर्तारः किं किं कुर्य्युरित्याह ॥

Anvay:

हे वसिष्ठ विद्वन् राजन् ! यथा विद्वांसः श्रवस्या ब्रह्माण्युदैरत तथेन्द्रमु समर्ये महय। य उपश्रोता शवसेवतो मे विश्वानि वचांस्या ततान तमप्युपदेष्टारं समर्ये महय ॥१॥

Word-Meaning: - (उत्) (उ) (ब्रह्माणि) धनधान्यानि (ऐरत) प्रेरयन्ति (श्रवस्या) श्रवःस्वन्नेषु श्रवणेषु भवानि (इन्द्रम्) शूरवीरम् (समर्ये) सङ्ग्रामे (महया) पूजय। अत्र संहितायामिति दीर्घः। (वसिष्ठ) अतिशयेन वसो (आ) समन्तात् (यः) (विश्वानि) सर्वाणि (शवसा) बलेन (ततान) तनोति (उपश्रोता) य उपद्रष्टा सञ्छृणोति (मे) मम (ईवतः) सामीप्यं गच्छतः (वचांसि) वचनानि ॥१॥
Connotation: - अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः। हे राजन् ! यदा सङ्ग्राम उपतिष्ठेत्तदा पुष्कलं धनं धान्यं शस्त्रादिकं सेनाङ्गानि चैतेषां रक्षकान् सुप्रबन्धकर्त्तॄन् भवान् प्रेरयतु तत्राप्तानुपदेष्टॄँश्च रक्षयत योद्धार उत्साहिताः सुरक्षिताः सन्तः क्षिप्रं विजयं कुर्य्युः ॥१॥
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MATA SAVITA JOSHI

या सूक्तात इंद्र, सेना, योद्धे व सर्व सेनापतींच्या कार्याचे वर्णन असल्यामुळे या सूक्ताच्या अर्थाची पूर्व सूक्तार्थाबरोबर संगती जाणावी.

Word-Meaning: - N/A
Connotation: - या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. हे राजा ! जेव्हा युद्ध सुरू होते तेव्हा पुष्कळ धन, अन्न, शस्त्र, सेनेचे अंग व त्यांचे रक्षण करणारा व चांगला प्रबंध करणारा यांना तू प्रेरणा दे. विद्वान आप्त व उपदेशक बाळग. त्यामुळे योद्धे उत्साहित व सुरक्षित राहून लवकर विजय प्राप्त करतील. ॥ १ ॥