सखा॑यस्त इन्द्र वि॒श्वह॑ स्याम नमोवृ॒धासो॑ महि॒ना त॑रुत्र। व॒न्वन्तु॑ स्मा॒ तेऽव॑सा समी॒के॒३॒॑भी॑तिम॒र्यो व॒नुषां॒ शवां॑सि ॥९॥
sakhāyas ta indra viśvaha syāma namovṛdhāso mahinā tarutra | vanvantu smā te vasā samīke bhītim aryo vanuṣāṁ śavāṁsi ||
सखा॑यः। ते॒। इ॒न्द्र॒। वि॒श्वह॑। स्या॒म॒। न॒मः॒ऽवृ॒धासः॑। म॒हि॒ना। त॒रु॒त्र॒। व॒न्वन्तु॑। स्म॒। ते॒। अव॑सा। स॒मी॒के। अ॒भिऽइ॑तिम्। अ॒र्यः। व॒नुषा॑म्। शवां॑सि ॥९॥
SWAMI DAYANAND SARSWATI
फिर किसकी मित्रता करनी चाहिये, इस विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥
SWAMI DAYANAND SARSWATI
पुनः कस्य मित्रता कार्येत्याह ॥
हे तरुतेन्द्र ! नमोवृधासो वयं महिना विश्वह ते सखायः स्याम ये ते समीकेऽवसाऽभीतिं वनुषां शवांसि च वन्वन्तु स्मार्यस्त्वमेतदेषां दध्याः ॥९॥
MATA SAVITA JOSHI
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