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प्र य॑न्ति य॒ज्ञं वि॒पय॑न्ति ब॒र्हिः सो॑म॒मादो॑ वि॒दथे॑ दु॒ध्रवा॑चः। न्यु॑ भ्रियन्ते य॒शसो॑ गृ॒भादा दू॒रउ॑पब्दो॒ वृष॑णो नृ॒षाचः॑ ॥२॥

English Transliteration

pra yanti yajñaṁ vipayanti barhiḥ somamādo vidathe dudhravācaḥ | ny u bhriyante yaśaso gṛbhād ā dūraüpabdo vṛṣaṇo nṛṣācaḥ ||

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Pad Path

प्र। य॒न्ति॒। य॒ज्ञम्। वि॒पय॑न्ति। ब॒र्हिः। सो॒म॒ऽमादः॑। वि॒दथे॑। दु॒ध्रऽवा॑चः। नि। ऊँ॒ इति॑। भ्रि॒य॒न्ते॒। य॒शसः॑। गृ॒भात्। आ। दू॒रेऽउ॑पब्दः। वृष॑णः। नृ॒ऽसाचः॑ ॥२॥

Rigveda » Mandal:7» Sukta:21» Mantra:2 | Ashtak:5» Adhyay:3» Varga:3» Mantra:2 | Mandal:7» Anuvak:2» Mantra:2


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर मनुष्य क्या करें, इस विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥

Word-Meaning: - जो (सोममादः) सोम से हर्षित होते (दुध्रवाचः) वा जिनकी दुःख से धारण करने योग्य वाणी (वृषणः) वे बलिष्ठ (नृषाचः) नायक मनुष्यों से सम्बन्ध करनेवाले जन (यज्ञम्) विद्वानों के सङ्ग आदि को (प्र, यन्ति) प्राप्त होते हैं (विदथे) संग्राम में (बर्हिः) अन्तरिक्ष में (विपयन्ति) विशेषता से जाते हैं (उ) और जो (यशसः) कीर्ति से वा (गृभात्) घर से (आ, भ्रियन्ते) अच्छे प्रकार उत्तमता को धारण करते हैं तथा (दूरउपब्दः) जिनकी दूर वाणी पहुँचती वे सज्जन (नि) निरन्तर उत्तमता को धारण करते हैं और वे विजय को प्राप्त होते हैं ॥२॥
Connotation: - जैसे यज्ञ का अनुष्ठान करनेवाले आनन्द को प्राप्त होते हैं, वैसे युद्ध में निपुण पुरुष विजय को प्राप्त होते हैं, जैसे दूरदेशों में कीर्ति रखनेवाला विद्वान् जन होता है, वैसे यश से संचय किये कर्मों को कर परोपकारी जन हों ॥२॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनर्मनुष्याः किं कुर्य्युरित्याह ॥

Anvay:

ये सोममादो दुध्रवाचो वृषणो नृषाचो यज्ञं प्र यन्ति विदथे बर्हिर्विपयन्त्यु ये यशसो गृभादा भ्रियन्ते दूरउपब्दो निभ्रियन्ते ते विजयमाप्नुवन्ति ॥२॥

Word-Meaning: - (प्र) (यन्ति) प्राप्नुवन्ति (यज्ञम्) विद्वत्सङ्गादिकम् (विपयन्ति) विशेषेण गच्छन्ति (बर्हिः) अन्तरिक्षे (सोममादः) ये सोमेन मदन्ति हर्षन्ति ते (विदथे) सङ्ग्रामे (दुध्रवाचः) दुर्धरा वाग्येषान्ते (नि) (उ) (भ्रियन्ते) ध्रियन्ते (यशसः) कीर्तेः (गृभात्) गृहात् (आ) (दूरउपब्दः) दूर उपब्दिर्वाग्येषान्ते। उपब्दिरिति वाङ्नाम। (निघं०१.११)। (वृषणः) बलिष्ठाः (नृषाचः) ये नृभिर्नायकैस्सह सम्बध्नन्ति ते ॥२॥
Connotation: - यथा यज्ञानुष्ठातार आनन्दमाप्नुवन्ति तथा युद्धकुशला विजयं लभन्ते यथा दूरकीर्तिर्विद्वान् भवति तथा यशोचितानि कर्माणि कृत्वा परोपकारिणो जना भवन्तु ॥२॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - जसे यज्ञाचे अनुष्ठान करणारे आनंदित होतात. तसे युद्धात निपुण असलेले पुरुष विजयी होतात. जशी विद्वानांची कीर्ती दूरदेशी पसरलेली असते तसे यशदायी कर्म करून परोपकारी बनावे. ॥ २ ॥