यस्त॑ इन्द्र प्रि॒यो जनो॒ ददा॑श॒दस॑न्निरे॒के अ॑द्रिवः॒ सखा॑ ते। व॒यं ते॑ अ॒स्यां सु॑म॒तौ चनि॑ष्ठाः॒ स्याम॒ वरू॑थे॒ अघ्न॑तो॒ नृपी॑तौ ॥८॥
yas ta indra priyo jano dadāśad asan nireke adrivaḥ sakhā te | vayaṁ te asyāṁ sumatau caniṣṭhāḥ syāma varūthe aghnato nṛpītau ||
यः। ते॒। इ॒न्द्र॒। प्रि॒यः। जनः॑। ददा॑शत्। अस॑त्। नि॒रे॒के। अ॒द्रि॒ऽवः॒। सखा॑। ते॒। व॒यम्। ते॒। अ॒स्याम्। सु॒ऽम॒तौ। चनि॑ष्ठाः। स्या॒म॒। वरू॑थे। अघ्न॑तः। नृऽपी॑तौ ॥८॥
SWAMI DAYANAND SARSWATI
फिर राजा, भृत्य और प्रजाजन परस्पर कैसे वर्त्ताव करें, इस विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥
SWAMI DAYANAND SARSWATI
पुना राजभृत्यप्रजाजनाः परस्परं कथं वर्तेरन्नित्याह ॥
हे अद्रिव इन्द्र ! यः प्रियो जनः सखा निरेकेऽसत्सुखं ददाशद्यस्य तेऽस्यां नृपीतौ सुमतौ वयं चनिष्ठाः स्यामाऽघ्नतस्ते तव वरूथे चनिष्ठाः स्याम तौ द्वौ माननीयौ वयं सत्कुर्याम ॥८॥
MATA SAVITA JOSHI
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