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नू चि॒त्स भ्रे॑षते॒ जनो॒ न रे॑ष॒न्मनो॒ यो अ॑स्य घो॒रमा॒विवा॑सात्। य॒ज्ञैर्य इन्द्रे॒ दध॑ते॒ दुवां॑सि॒ क्षय॒त्स रा॒य ऋ॑त॒पा ऋ॑ते॒जाः ॥६॥

English Transliteration

nū cit sa bhreṣate jano na reṣan mano yo asya ghoram āvivāsāt | yajñair ya indre dadhate duvāṁsi kṣayat sa rāya ṛtapā ṛtejāḥ ||

Pad Path

नु। चि॒त्। सः। भ्रे॒ष॒ते॒। जनः॑। न। रे॒ष॒त्। मनः॑। यः। अ॒स्य॒। घो॒रम्। आ॒ऽविवा॑सात्। य॒ज्ञैः। यः। इन्द्रे॑। दध॑ते। दुवां॑सि। क्षय॑त्। सः। रा॒ये। ऋ॒त॒ऽपाः। ऋ॒ते॒ऽजाः ॥६॥

Rigveda » Mandal:7» Sukta:20» Mantra:6 | Ashtak:5» Adhyay:3» Varga:2» Mantra:1 | Mandal:7» Anuvak:2» Mantra:6


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर मनुष्य क्या करके कैसे हों, इस विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥

Word-Meaning: - (यः) जो (जनः) मनुष्य (अस्य) इसके (घोरम्) घोर (मनः) अन्तःकरण को (न) नहीं (आविवासात्) सेवे (सः, चित्) वही (नु) शीघ्र विजय को (भ्रेषते) पाता और वह नहीं (रेषत्) हिंसा करता है (यः) जो (ऋतपाः) जो सत्य की पालना करने और (ऋतेजाः) सत्य में उत्पन्न अर्थात् प्रसिद्ध होनेवाला (यज्ञैः) मिले हुए कर्मों से (इन्द्रे) परमैश्वर्ययुक्त परमेश्वर में (दुवांसि) सेवनों को (दधते) धारण करता (सः) वह (राये) धन के लिये निरन्तर (क्षयत्) वसे ॥५॥
Connotation: - जो रागद्वेषरहित मनवाले, घोरकर्मरहित, परमेश्वर के सेवक, धर्मात्मा जन हों, वे कभी नष्ट न हों ॥६॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनर्मनुष्याः किं कृत्वा कीदृशा भवेयुरित्याह ॥

Anvay:

यो जनोऽस्य घोरं मनो नाऽऽविवासात् स चिन्नु विजयं भ्रेषते स न रेषत्। य ऋतपा ऋतेजा यज्ञैरिन्द्रे दुवांसि दधते स राये सततं क्षयत् ॥६॥

Word-Meaning: - (नू) सद्यः। अत्र ऋचि तुनुघेति दीर्घः। (चित्) अपि (सः) (भ्रेषते) प्राप्नोति (जनः) मनुष्यः (न) निषेधे (रेषत्) हिनस्ति (मनः) अन्तःकरणम् (यः) (अस्य) (घोरम्) (आविवासात्) समन्तात्सेवेत (यज्ञैः) सङ्गतैः कर्मभिः (यः) (इन्द्रे) परमैश्वर्ययुक्ते परमेश्वरे (दधते) धरति (दुवांसि) परिचरणानि सेवनानि (क्षयत्) निवसेत् (सः) (राये) धनाय (ऋतपाः) सः सत्यं पाति सः (ऋतेजाः) यः सत्ये जायते सः ॥६॥
Connotation: - ये रागद्वेषरहितमनसो घोरकर्मविरहाः परमेश्वरसेवका धर्मात्मानो जनाः स्युस्ते कदाचिद्धिंसिता न स्युः ॥६॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - ज्यांचे मन रागद्वेषरहित असते ते भयंकर कर्म करीत नाहीत. ते परमेश्वराचे सेवक असून धर्मात्मा असतात. ते कधी नष्ट होता कामा नयेत. ॥ ६ ॥