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उ॒त योष॑णे दि॒व्ये म॒ही न॑ उ॒षासा॒नक्ता॑ सू॒दुघे॑व धे॒नुः। ब॒र्हि॒षदा॑ पुरुहू॒ते म॒घोनी॒ आ य॒ज्ञिये॑ सुवि॒ताय॑ श्रयेताम् ॥६॥

English Transliteration

uta yoṣaṇe divye mahī na uṣāsānaktā sudugheva dhenuḥ | barhiṣadā puruhūte maghonī ā yajñiye suvitāya śrayetām ||

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Pad Path

उ॒त। योष॑णे॒ इति॑। दि॒व्ये इति॑। म॒ही इति॑। नः॒। उ॒षासा॒नक्ता॑। सु॒दुघा॑ऽइव। धे॒नुः। ब॒र्हि॒ऽसदा॑। पु॒रु॒हू॒ते इति॑ पु॒रु॒ऽहू॒ते। म॒घोनी॒ इति॑। आ। य॒ज्ञिये॑। सु॒वि॒ताय॑। श्र॒ये॒ता॒म् ॥६॥

Rigveda » Mandal:7» Sukta:2» Mantra:6 | Ashtak:5» Adhyay:2» Varga:2» Mantra:1 | Mandal:7» Anuvak:1» Mantra:6


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर विदुषी स्त्रियाँ कैसी हों, इस विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥

Word-Meaning: - हे विद्वानो ! जो (नः) हमारे लिये (यज्ञिये) सम्बन्धी कर्म में (मघोनी) बहुत धन मिलने के निमित्त (योषणे) उत्तम स्त्रियों के तुल्य (दिव्ये) शुद्धस्वरूप (मही) बड़ी (धेनुः) विद्यायुक्त वाणी वा गौ (सुदुघेव) सुन्दर प्रकार कामनाओं को पूर्ण करनेवाली के तुल्य (उत) और (बर्हिषदा) अन्तरिक्ष में रहनेवाली (पुरुहूते) बहुतों से व्याख्यान की गई (उषासानक्ता) दिन रात रूप वेला हम को (आ, श्रयेताम्) आश्रय करें, वे दिन रात (सुविताय) ऐश्वर्य के लिये यथावत् सेवने योग्य हैं ॥६॥
Connotation: - इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। हे मनुष्यो ! जो स्त्रियाँ उत्तम विद्या और गुणों से युक्त, रात्रि दिन के तुल्य सुख देनेवाली सत्य वाणी के तुल्य प्रिय बोलनेवाली हों, उन्हीं का तुम लोग आश्रय करो ॥६॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनर्विदुष्यः स्त्रियः कीदृश्यो भवेयुरित्याह ॥

Anvay:

हे विद्वांसो ! ये नो यज्ञिये मघोनी योषणे इव दिव्ये मही धेनुः सुदुघेवोत बर्हिषदा पुरुहूते उषासानक्ता न आश्रयेतां ते सुविताय यथावत्सेवनीये ॥६॥

Word-Meaning: - (उत) अपि (योषणे) विदुष्यौ स्त्रियाविव (दिव्ये) शुद्धस्वरूपे (मही) महत्यौ (नः) अस्मभ्यम् (उषासानक्ता) रात्रिप्रातर्वेले (सुदुघेव) सुष्ठुकामप्रपूरिकेव (धेनुः) गौर्विद्यायुक्ता वाग्वा (बर्हिषदा) ये बर्हिष्यन्तरिक्षे सीदन्ति (पुरुहूते) बहुभिर्व्याख्याते (मघोनी) बहुधननिमित्ते (आ) (यज्ञिये) यज्ञसम्बन्धिनि कर्मणि (सुविताय) ऐश्वर्याय (श्रयेताम्) सेवेयाताम् ॥६॥
Connotation: - अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः। हे मनुष्या ! याः स्त्रियो दिव्यविद्यागुणऽन्विता रात्र्युषर्वत्सुखप्रदाः सत्या वागिव प्रियवचनाः स्युस्ता एव यूयमाश्रयत ॥६॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. हे माणसांनो ! ज्या स्त्रिया उत्तम विद्या व गुणांनी युक्त रात्र व दिवसाप्रमाणे सुख देणाऱ्या, सत्य वाणीप्रमाणे प्रिय बोलणाऱ्या असतील त्यांचाच तुम्ही आश्रय घ्या. ॥ ६ ॥