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वन॑स्प॒तेऽव॑ सृ॒जोप॑ दे॒वान॒ग्निर्ह॒विः श॑मि॒ता सू॑दयाति। सेदु॒ होता॑ स॒त्यत॑रो यजाति॒ यथा॑ दे॒वानां॒ जनि॑मानि॒ वेद॑ ॥१०॥

English Transliteration

vanaspate va sṛjopa devān agnir haviḥ śamitā sūdayāti | sed u hotā satyataro yajāti yathā devānāṁ janimāni veda ||

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Pad Path

वन॑स्पते। अव॑। सृ॒ज॒। उप॑। दे॒वान्। अ॒ग्निः। ह॒विः। श॒मि॒ता। सू॒द॒या॒ति॒। सः। इत्। ऊँ॒ इति॑। होता॑। स॒त्यऽत॑रः। य॒जा॒ति॒। यथा॑। दे॒वाना॑म्। जनि॑मानि। वेद॑ ॥१०॥

Rigveda » Mandal:7» Sukta:2» Mantra:10 | Ashtak:5» Adhyay:2» Varga:2» Mantra:5 | Mandal:7» Anuvak:1» Mantra:10


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर विद्वान् लोग क्या करें, इस विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥

Word-Meaning: - हे (वनस्पते) किरणों के पालक सूर्य के तुल्य तेजस्वि विद्वन् ! (शमिता) शान्तियुक्त आप (यथा) जैसे (अग्निः) अग्नि (हविः) हवन किये द्रव्य को (सूदयाति) छिन्न-भिन्न करे, वैसे (देवान्) दिव्यगुणों को (उप, अव, सृज) फैलाइये जैसे (होता) दाता (यजाति) यज्ञ करे, वैसे (इत्) ही (उ) तो (सत्यतरः) सत्य से दुःख के पार होनेवाले हूजिये। जो (देवानाम्) पृथिव्यादि दिव्य पदार्थों वा विद्वानों के (जनिमानि) जन्मों को (वेद) जानता है, (सः) वह पदार्थविद्या को प्राप्त होने योग्य है ॥१०॥
Connotation: - इस मन्त्र में उपमा और वाचकलुप्तोपमालङ्कार हैं। हे विद्वानो ! यदि आप लोग सूर्य जैसे वर्षा को, होता जैसे यज्ञ को और विद्वान् जैसे विद्या को, वैसे पढ़ाने और उपदेश से सर्वोपकार को सिद्ध करें तो आप के तुल्य कोई लोग नहीं हो, यह हम जानते हैं ॥१०॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनर्विद्वांसः किं कुर्य्युरित्याह ॥

Anvay:

हे वनस्पते ! शमिता त्वं यथाग्निर्हविः सूदयाति तथा देवानुपाऽव सृज यथा होता यजाति तथेदु सत्यतरो भव यो देवानां जनिमानि वेद स पदार्थविद्यां प्राप्तुमर्हति ॥१०॥

Word-Meaning: - (वनस्पते) वनानां किरणानां पालक सूर्य इव विद्वन् (अव) (सृज) (उप) (देवान्) (अग्निः) पावकः (हविः) हुतं द्रव्यम् (शमिता) शान्तियुक्तः (सूदयाति) सूदयेत् क्षरयेत् (सः) (इत्) एव (उ) (होता) दाता (सत्यतरः) यः सत्येन दुःखं तरति (यजाति) यजेत् (यथा) (देवानाम्) दिव्यानां पृथिव्यादिपदार्थानां विदुषां वा (जनिमानि) जन्मानि (वेद) जानाति ॥१०॥
Connotation: - अत्रोपमावाचकलुप्तोपमालङ्कारः। हे विद्वांसो ! यदि भवन्तः सूर्य्यो वर्षा इव होता यज्ञमिव विद्वान् विद्या इवाऽध्यापनोपदेशाभ्यां सर्वोपकारं साध्नुयुस्तर्हि भवादृशाः केऽपि न सन्तीति वयं विजानीयामः ॥१०॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - या मंत्रात उपमा व वाचकलुप्तोपमालंकार आहेत. हे विद्वानांनो ! जर तुम्ही सूर्य जशी वृष्टी करतो, होता जसा यज्ञ करतो, विद्वान जशी विद्या देतो तसे अध्यापन व उपदेश करून सर्वांवर उपकार केल्यास तुमच्यासारखे कोणीही नाही हे आम्ही जाणतो. ॥ १० ॥