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त्वं धृ॑ष्णो धृष॒ता वी॒तह॑व्यं॒ प्रावो॒ विश्वा॑भिरू॒तिभिः॑ सु॒दास॑म्। प्र पौरु॑कुत्सिं त्र॒सद॑स्युमावः॒ क्षेत्र॑साता वृत्र॒हत्ये॑षु पू॒रुम् ॥३॥

English Transliteration

tvaṁ dhṛṣṇo dhṛṣatā vītahavyam prāvo viśvābhir ūtibhiḥ sudāsam | pra paurukutsiṁ trasadasyum āvaḥ kṣetrasātā vṛtrahatyeṣu pūrum ||

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Pad Path

त्वम्। धृ॒ष्णो॒ इति॑। धृ॒ष॒ता। वी॒तऽह॑व्यम्। प्र। आ॒वः॒। विश्वा॑भिः। ऊ॒तिऽभिः॑। सु॒ऽदास॑म्। प्र। पौरु॑ऽकुत्सिम्। त्र॒सद॑स्युम्। आ॒वः॒। क्षेत्र॑ऽसाता। वृ॒त्र॒ऽहत्ये॑षु। पू॒रुम् ॥३॥

Rigveda » Mandal:7» Sukta:19» Mantra:3 | Ashtak:5» Adhyay:2» Varga:29» Mantra:3 | Mandal:7» Anuvak:2» Mantra:3


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर वह राजा क्या करे, इस विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥

Word-Meaning: - हे (धृष्णो) दृढ पुरुष ! (त्वम्) आप (धृषता) प्रगल्भ पुरुष के साथ (विश्वाभिः) समग्र (ऊतिभिः) रक्षाओं के साथ (वीतहव्यम्) पाये हुए और पाने योग्य पदार्थ वा (सुदासम्) अच्छे जिसके दास जो (पौरुकुत्सिम्) बहुत शस्त्रास्त्रविद्याओं के योग रखनेवाले पुत्र (त्रसदस्युम्) जिससे भयभीत दस्यु होते हैं उस जन की निरन्तर (प्रावः) कामना करो और (क्षेत्रसाता) क्षेत्रों के विभाग में (वृत्रहत्येषु) शत्रुओं के मारने रूप सङ्ग्रामों में (पूरुम्) पालना वा धारणा करनेवाले की (प्रावः) कामना करो ॥३॥
Connotation: - जो राजजन धार्मिक, दस्युओं को मारने, शस्त्र अस्त्रों के फेंकने में कुशल और विद्यादि शुभगुणों के देनेवाले सज्जनों का सत्कार करते हैं, वे सदा सुखी होते हैं ॥३॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनः स किं कुर्यादित्याह ॥

Anvay:

हे धृष्णो ! त्वं धृषता विश्वाभिरूतिभिर्वीतहव्यं सुदासं पौरुकुत्सिं त्रसदस्युं सततं प्रावः। क्षेत्रसाता वृत्रहत्येषु पूरुं प्रावः ॥३॥

Word-Meaning: - (त्वम्) (धृष्णो) दृढ (धृषता) प्रगल्भेन पुरुषेण सह (वीतहव्यम्) प्राप्तप्राप्तव्यम् (प्र आवः) प्रकर्षेण रक्ष (विश्वाभिः) समग्राभिः (ऊतिभिः) रक्षाभिः (सुदासम्) शोभना दासा दातारः सेवका वा यस्य तम् (प्र) (पौरुकुत्सिम्) पुरवो बहवः कुत्साः शस्त्राऽस्त्रविद्यायोगा यस्य तस्यापत्यम् (त्रसदस्युम्) त्रसा भयभीता दस्यवो भवन्ति यस्मात्तम् (आवः) कामयस्व (क्षेत्रसाता) क्षेत्राणां विभागे (वृत्रहत्येषु) शत्रुहननेषु सङ्ग्रामेषु (पूरुम्) पालकं धारकं वा ॥३॥
Connotation: - ये राजानो धार्मिकान् दस्युप्रहारकाञ्छस्त्रास्त्रप्रक्षेपकुशलान् विद्यादिशुभगुणदातॄन् सत्कुर्वन्ति ते सदा सुखिनो जायन्ते ॥३॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - जे राजे धार्मिक, दुष्टांना मारणारे, शस्त्र-अस्त्र फेकण्यात कुशल व विद्या इत्यादी शुभ गुण देणाऱ्या सज्जनांचा सत्कार करतात ते सदैव सुखी असतात. ॥ ३ ॥