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ए॒ते स्तोमा॑ न॒रां नृ॑तम॒ तुभ्य॑मस्म॒द्र्य॑ञ्चो॒ दद॑तो म॒घानि॑। तेषा॑मिन्द्र वृत्र॒हत्ये॑ शि॒वो भूः॒ सखा॑ च॒ शूरो॑ऽवि॒ता च॑ नृ॒णाम् ॥१०॥

English Transliteration

ete stomā narāṁ nṛtama tubhyam asmadryañco dadato maghāni | teṣām indra vṛtrahatye śivo bhūḥ sakhā ca śūro vitā ca nṛṇām ||

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Pad Path

ए॒ते। स्तोमाः॑। न॒राम्। नृ॒ऽत॒म॒। तुभ्य॑म्। अ॒स्म॒द्र्य॑ञ्चः। दद॑तः। म॒घानि॑। तेषा॑म्। इ॒न्द्र॒। वृ॒त्र॒ऽहत्ये॑। शि॒वः। भूः॒। सखा॑। च॒। शूरः॑। अ॒वि॒ता। च॒। नृ॒णाम् ॥१०॥

Rigveda » Mandal:7» Sukta:19» Mantra:10 | Ashtak:5» Adhyay:2» Varga:30» Mantra:5 | Mandal:7» Anuvak:2» Mantra:10


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर राजा क्या करे, इस विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥

Word-Meaning: - हे (नराम्) नायक मनुष्यों के बीच (नृतम) अतीव नायक (इन्द्र) परमैश्वर्ययुक्त राजा ! जो (एते) ये (अस्मद्र्यञ्चः) हम लोगों को प्राप्त होते हुए (स्तोमाः) प्रशंसनीय विद्वान् और पढ़नेवाले (तुभ्यम्) तुम्हारे लिये (मघानि) विद्याधनों को (ददतः) देते हैं (तेषाम्) उन (नृणाम्) मनुष्यों के (वृत्रहत्ये) मेघों के हनन करने के समान संग्राम में सूर्य के समान (अविता) रक्षा करनेवाले (शिवः) मङ्गलकारी (सखा, च) और मित्र (शूरः) शत्रुओं के मारनेवाले (च) भी आप (भूः) हूजिये ॥१०॥
Connotation: - हे राजन् ! जो आप विद्वानों की रक्षा करके उनसे उपकार लें तो कौन-कौन उन्नति न हो ॥१०॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुना राजा किं कुर्यादित्याह ॥

Anvay:

हे नरां नृतमेन्द्र ! य एत अस्मद्र्यञ्चः स्तोमास्तुभ्यं मघानि ददतस्तेषां नृणां वृत्रहत्ये सूर्य इवाऽविता शिवः सखा च शूरश्च त्वं भूः ॥१०॥

Word-Meaning: - (एते) (स्तोमाः) प्रशंसनीया विद्वांसोऽध्येतारश्च (नराम्) नायकानाम् नृणां मध्ये (नृतम) अतिशयेन नायक (तुभ्यम्) (अस्मद्र्यञ्चः) येऽस्मानञ्चन्ति प्राप्नुवन्ति ते (ददतः) (मघानि) विद्याधनादीनि (तेषाम्) (इन्द्र) परमैश्वर्य्ययुक्त राजन् (वृत्रहत्ये) मेघहनन इव सङ्ग्रामे (शिवः) मङ्गलकारी (भूः) भव। अत्राडभावः। (सखा) सुहृत् (च) (शूरः) शत्रूणां हन्ता (अविता) रक्षकः (च) (नृणाम्) मनुष्याणाम् ॥१०॥
Connotation: - हे राजन् ! यदि भवान् विदुषां रक्षां कृत्वा तेभ्य उपकारं गृह्णीयात्तर्हि का कोन्नतिर्न स्यात् ॥१०॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - हे राजा ! जर तू विद्वानांचे रक्षण करून त्यांच्याकडून उपकार घेतलेस तर कुणाकुणाची उन्नती होणार नाही? ॥ १० ॥