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आ॒ध्रेण॑ चि॒त्तद्वेकं॑ चकार सिं॒ह्यं॑ चि॒त्पेत्वे॑ना जघान। अव॑ स्र॒क्तीर्वे॒श्या॑वृश्च॒दिन्द्रः॒ प्राय॑च्छ॒द्विश्वा॒ भोज॑ना सु॒दासे॑ ॥१७॥

English Transliteration

ādhreṇa cit tad v ekaṁ cakāra siṁhyaṁ cit petvenā jaghāna | ava sraktīr veśyāvṛścad indraḥ prāyacchad viśvā bhojanā sudāse ||

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Pad Path

आ॒ध्रेण॑। चि॒त्। तत्। ऊँ॒ इति॑। एक॑म्। च॒का॒र॒। सिं॒ह्य॑म्। चि॒त्। पेत्वे॑न। ज॒घा॒न॒। अव॑। स्र॒क्तीः। वे॒श्या॑। अ॒वृ॒श्च॒त्। इन्द्रः॑। प्र। अ॒य॒च्छ॒त्। विश्वा॑। भोज॑ना। सु॒ऽदासे॑ ॥१७॥

Rigveda » Mandal:7» Sukta:18» Mantra:17 | Ashtak:5» Adhyay:2» Varga:27» Mantra:2 | Mandal:7» Anuvak:2» Mantra:17


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

कौन शत्रुओं के जीतने में योग्य होते हैं, इस विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥

Word-Meaning: - जो (इन्द्रः) दुष्टों के समूह को विदारनेवाला (स्रक्तीः) रची हुई सेनाओं को (वेश्या) सूचना से (अवृश्चत्) छिन्न-भिन्न करता (आध्रेण) सब ओर से धारण किये विषय से (चित्) ही (तत्) उस (एकम्, उ) एक को (चकार) सिद्ध करता (सिंह्यम्) सिंहों में उत्पन्न हुए बल के समान (चित्) ही (पेत्वेन) पहुँचाने से (अव, जघान) शत्रुओं को मारता और (विश्वा) समस्त (भोजना) अन्नादि पदार्थों को (प्र, अयच्छत्) देता है उस (सुदासे) अच्छे देनेवाले के होते वीरजन कैसे नहीं शत्रुओं को जीतें ॥१७॥
Connotation: - इस मन्त्र में उपमालङ्कार है । जो वीर सिंह के समान पराक्रम पर शत्रुओं को मारते हैं और भूगोल में एक अखण्डित राज्य करने को अच्छा यत्न करते हैं, वे समग्र बल को विधान कर और वीरों को सत्कार कर बुद्धिमानों से राज्य की शिक्षा दिलाने को प्रवृत्त हों ॥१७॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

के शत्रून् विजेतुमर्हन्तीत्याह ॥

Anvay:

य इन्द्रो स्रक्तीर्वेश्यावृश्चत् आध्रेण चित्तदेकमु चकार सिह्यं चित्पेत्वेनाव जघान विश्वा भोजना प्रायच्छत्तस्मिन् सुदासे सति वीरा कथं न शत्रून् विजयेरन् ॥१७॥

Word-Meaning: - (आध्रेण) समन्तात् घृतेन (चित्) अपि (तत्) (उ) वितर्के (एकम्) (चकार) करोति (सिंह्यम्) सिंहेषु भवं बलमिव (चित्) इव [एव] (पेत्वेन) प्रापणेन। अत्र संहितायामिति दीर्घः। (जघान) हन्ति (अव) (स्रक्तीः) सृज्यमानाः सेनाः (वेश्या) वेशी प्रवेशयित्री सूची तथा (अवृश्चत्) वृश्चति छिनत्ति (इन्द्रः) दुष्टदलविदारकः (प्र) (अयच्छत्) प्रयच्छति ददाति (विश्वा) सर्वाणि (भोजना) भोजनानि अन्नादीनि (सुदासे) सुष्ठु दातरि सति ॥१७॥
Connotation: - अत्रोपमालङ्कारः । ये वीराः सिंहवत् पराक्रम्य शत्रून् घ्नन्त्यखण्डितमेकं राज्यं भूगोले कर्तुं प्रयतन्ते ते समग्रं बलं विधाय वीरान् सत्कृत्य धीमद्भिः राज्यं शासितुं प्रवर्तेरन् ॥१७॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - या मंत्रात उपमालंकार आहे. जे वीर लोक सिंहाप्रमाणे पराक्रम करून शत्रूंना मारतात व भूगोलात एक अखंडित राज्य बनविण्याचा उत्तम प्रयत्न करतात, त्यांनी संपूर्ण बल एकवटावे व वीरांचा सत्कार करून बुद्धिमानांना राज्य शासित करण्यास प्रवृत्त करावे. ॥ १७ ॥