अ॒र्धं वी॒रस्य॑ शृत॒पाम॑नि॒न्द्रं परा॒ शर्ध॑न्तं नुनुदे अ॒भि क्षाम्। इन्द्रो॑ म॒न्युं म॑न्यु॒म्यो॑ मिमाय भे॒जे प॒थो व॑र्त॒निं पत्य॑मानः ॥१६॥
ardhaṁ vīrasya śṛtapām anindram parā śardhantaṁ nunude abhi kṣām | indro manyum manyumyo mimāya bheje patho vartanim patyamānaḥ ||
अ॒र्धम्। वी॒रस्य॑। शृ॒त॒ऽपाम्। अ॒नि॒न्द्रम्। परा॑। शर्ध॑न्तम्। नु॒नु॒दे॒। अ॒भि। क्षाम्। इन्द्रः। म॒न्युम्। म॒न्यु॒ऽम्यः॑। मि॒मा॒य॒। भे॒जे। प॒थः। व॒र्त॒निम्। पत्य॑मानः ॥१६॥
SWAMI DAYANAND SARSWATI
फिर वह राजा क्या करे, इस विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥
SWAMI DAYANAND SARSWATI
पुनस्स राजा किं कुर्यादित्याह ॥
यः क्षां पत्यमान इन्द्रो वीरस्य शृतपामर्धं शर्धन्तं सेनेशं प्राप्यानिन्द्रम्पराणुनुदे यो मन्युम्यः शत्रूणामुपरि मन्युमभिमिमाय पथो वर्तनिं च भेजे स एव राजवरो राजराजेश्वरो भवति ॥१६॥
MATA SAVITA JOSHI
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