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त्वे ह॒ यत्पि॒तर॑श्चिन्न इन्द्र॒ विश्वा॑ वा॒मा ज॑रि॒तारो॒ अस॑न्वन्। त्वे गावः॑ सु॒दुघा॒स्त्वे ह्यश्वा॒स्त्वं वसु॑ देवय॒ते वनि॑ष्ठः ॥१॥

English Transliteration

tve ha yat pitaraś cin na indra viśvā vāmā jaritāro asanvan | tve gāvaḥ sudughās tve hy aśvās tvaṁ vasu devayate vaniṣṭhaḥ ||

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Pad Path

त्वे इति॑। ह॒। यत्। पि॒तरः॑। चि॒त्। नः॒। इ॒न्द्र॒। विश्वा॑। वा॒मा। ज॒रि॒तारः॑। अस॑न्वन्। त्वे इति॑। गावः॑। सु॒ऽदुघाः॑। त्वे इति॑। हि। अश्वाः॑। त्वम्। वसु॑। दे॒व॒ऽय॒ते। वनि॑ष्ठः ॥१॥

Rigveda » Mandal:7» Sukta:18» Mantra:1 | Ashtak:5» Adhyay:2» Varga:24» Mantra:1 | Mandal:7» Anuvak:2» Mantra:1


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

अब पच्चीस ऋचावाले अठारहवें सूक्त का प्रारम्भ है, उसके प्रथम मन्त्र में राजा कैसा श्रेष्ठ होता है, इस विषय को कहते हैं ॥

Word-Meaning: - हे (इन्द्र) राजन् ! (त्वे) आपके होते (यत्) जो (नः) हमारे (पितरः) ऋतुओं के समान पालना करनेवाले (चित्) और (जरितारः) स्तुतिकर्ता जन (विश्वा) समस्त (वामा) प्रशंसा करने योग्य पदार्थों की (असन्वन्) याचना करते हैं (त्वे, ह) आपके होते (सुदुघाः) सुन्दर काम पूरनेवाली (गावः) गौएँ हैं, उनको माँगते हैं (त्वे, हि) आप ही के होते (अश्वाः) जो बड़े-बड़े घोड़े हैं उनको माँगते हैं जो आप (देवयते) कामना करनेवाले के लिये (वनिष्ठः) अतीव पदार्थों को अलग करनेवाले होते हुए (वसु) धन देते हैं सो (त्वम्) आप सब को सेवा करने योग्य हैं ॥१॥
Connotation: - इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। यदि राजा सूर्य के समान विद्या और न्याय का प्रकाशक हो तो सम्पूर्ण राज्य कामना से अलङ्कृत होकर राजा को पूर्ण कामनावाला करे तथा धार्मिक जन धर्म का आचरण करें और अधार्मिक जन भी पापाचरण को छोड़ धर्मात्मा होवें ॥१॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

अथ राजा कीदृशो वरो भवतीत्याह ॥

Anvay:

हे इन्द्र राजँस्त्वे सति सद्ये नः पितरश्चिज्जरितारो विश्वा वामा असन्वँस्त्वे ह सुदुघा गावोऽसन्वँस्त्वे ह्यश्वा असन्वन् यस्त्वं देवयते वनिष्ठः सन् वसु ददासि स त्वं सर्वैः सेवनीयः ॥१॥

Word-Meaning: - (त्वे) त्वयि (ह) खलु (यत्) ये (पितरः) ऋतवः इव पालयितारः (चित्) अपि (नः) अस्माकम् (इन्द्र) (विश्वा) सर्वाणि (वामा) प्रशस्यानि (जरितारः) स्तावकः (असन्वन्) याचन्ते (त्वे) त्वयि (गावः) धेनवः (सुदुघाः) सुष्ठु कामप्रपूरिकाः (त्वे) त्वयि (हि) (अश्वाः) महान्तस्तुरङ्गाः (त्वम्) (वसु) द्रव्यम् (देवयते) कामयमानाय (वनिष्ठः) अतिशयेन वनिता सम्भाजकः ॥१॥
Connotation: - अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः। यदि राजा सूर्यवद्विद्यान्यायप्रकाशकौ भवेत्तर्हि सर्वं राष्ट्रं कामेनालंकृतं भूत्वा राजानमलंकामं कुर्याद्धार्मिका धर्ममाचरेयुरधार्मिकाश्च पापाचारं त्यक्त्वा धर्मिष्ठा भवेयुः ॥१॥
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MATA SAVITA JOSHI

या सूक्तात इंद्र, राजा, प्रजा, मित्र, धार्मिक, अमात्य, शत्रू निवारण व धार्मिक सत्काराचा अर्थ प्रतिपादन करण्याने या सूक्ताच्या अर्थाची पूर्वसूक्तार्थाबरोबर संगती जाणावी.

Word-Meaning: - N/A
Connotation: - या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. जर राजा सूर्याप्रमाणे विद्या व न्यायाचा प्रकाशक असेल तर संपूर्ण राज्य कामनेने अलंकृत होऊन राजाला पूर्ण कामनायुक्त करते. धार्मिक लोकांनी धर्माचे आचरण करावे व अधार्मिक लोकांनीही पापाचरणाचा त्याग करून धर्मात्मा बनावे. ॥ १ ॥