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ते ते॑ दे॒वाय॒ दाश॑तः स्याम म॒हो नो॒ रत्ना॒ वि द॑ध इया॒नः ॥७॥

English Transliteration

te te devāya dāśataḥ syāma maho no ratnā vi dadha iyānaḥ ||

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Pad Path

ते। ते॒। दे॒वाय॑। दाश॑तः। स्या॒म॒। म॒हः। नः॒। रत्ना॑। वि। द॒धः॒। इ॒या॒नः ॥७॥

Rigveda » Mandal:7» Sukta:17» Mantra:7 | Ashtak:5» Adhyay:2» Varga:23» Mantra:7 | Mandal:7» Anuvak:1» Mantra:7


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर वे परस्पर क्या क्या देवें, इस विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥

Word-Meaning: - हे अध्यापक ! जो आप (नः) हमारे लिये (इयानः) प्राप्त होते हुए (महः) बड़े-बड़े (रत्ना) रत्नों को (वि, दधः) विधान करते हो (ते) उन (देवाय) विद्वान् अध्यापक आप के लिये (ते) वे हम लोग (दाशतः) देनेवाले (स्याम) हों ॥७॥
Connotation: - जैसे अध्यापक जन प्रीति के साथ विद्यायें देवें, वैसे विद्यार्थी जन वाणी, मन शरीर और धनों से अध्यापकों को तृप्त करें ॥७॥ इस सूक्त में अध्यापक और विद्यार्थियों के कृत्य का वर्णन होने से इस सूक्त के अर्थ की इससे पूर्व सूक्त के अर्थ के साथ सङ्गति जाननी चाहिये। यह ऋग्वेद के सप्तम मण्डल में पहिला अनुवाक और सत्रहवाँ सूक्त तथा पाँचवें अष्टक के द्वितीयाध्याय में तेईसवाँ वर्ग पूरा हुआ ॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनस्ते परस्परं किं किं प्रदद्युरित्याह ॥

Anvay:

हे अध्यापक ! यो भवान् न इयानो महो रत्ना वि दधस्तस्मै ते देवाय ते यं दाशतः स्याम ॥७॥

Word-Meaning: - (ते) (ते) तुभ्यम् (देवाय) विदुषेऽध्यापकाय (दाशतः) दातारः (स्याम) (महः) महान्ति (नः) अस्मभ्यम् (रत्ना) विद्यादिरमणीयप्रज्ञाधनानि (वि) (दधः) विदधाति (इयानः) प्राप्नुवन् ॥७॥
Connotation: - यथाऽध्यापकाः प्रीत्या विद्याः प्रदद्युस्तथा विद्यार्थिनो वाङ्मनःशरीरधनैरध्यापकान् प्रीणीयुरिति ॥७॥ अत्राध्यापकविद्यार्थिकृत्यवर्णनादेतदर्थस्य पूर्वसूक्तार्थेन सह सङ्गतिर्वेद्या ॥ इत्यृग्वेदे सप्तममण्डले प्रथमोऽनुवाकः सप्तदशं सूक्तं पञ्चमेऽष्टके द्वितीयाध्याये त्रयोविंशो वर्गश्च समाप्तः ॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - जसे अध्यापक प्रेमाने विद्या शिकवितात तसे विद्यार्थ्यांनी वाणी, मन, शरीर व धन याद्वारे अध्यापकांना तृप्त करावे. ॥ ७ ॥