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कृ॒धि रत्नं॒ यज॑मानाय सुक्रतो॒ त्वं हि र॑त्न॒धा असि॑। आ न॑ ऋ॒ते शि॑शीहि॒ विश्व॑मृ॒त्विजं॑ सु॒शंसो॒ यश्च॒ दक्ष॑ते ॥६॥

English Transliteration

kṛdhi ratnaṁ yajamānāya sukrato tvaṁ hi ratnadhā asi | ā na ṛte śiśīhi viśvam ṛtvijaṁ suśaṁso yaś ca dakṣate ||

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Pad Path

कृ॒धि। रत्न॑म्। यज॑मानाय। सु॒क्र॒तो॒ इति॑ सुऽक्रतो। त्वम्। हि। र॒त्न॒ऽधाः। असि॑। आ। नः॒। ऋ॒ते। शि॒शी॒हि॒। विश्व॑म्। ऋ॒त्विज॑म्। सु॒ऽशंसः॑। यः। च॒। दक्ष॑ते ॥६॥

Rigveda » Mandal:7» Sukta:16» Mantra:6 | Ashtak:5» Adhyay:2» Varga:21» Mantra:6 | Mandal:7» Anuvak:1» Mantra:6


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर वह राजा क्या करे, इस विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥

Word-Meaning: - हे (सुक्रतो) उत्तम बुद्धि वा धर्मयुक्त कर्म करनेवाले पुरुष ! (यः) जो (सुशंसः) सुन्दर प्रशंसायुक्त जन (दक्षते) वृद्धि को प्राप्त होता उस (विश्वम्) सब (ऋत्विजम्) ऋतुओं के योग्य काम करनेवाले को (च) और (नः) हमको (ऋते) सत्यभाषणादि रूप सङ्गत करने योग्य व्यवहार में (त्वम्) आप (आ, शिशीहि) तीव्र उद्योगी कीजिये (हि) जिस कारण आप (रत्नधाः) उत्तम धनों के धारणकर्त्ता (असि) हैं इस कारण (यजमानाय) परोपकारार्थ यज्ञ करते हुए के लिये (रत्नम्) रमणीय धन को प्रकट (कृधि) कीजिये ॥६॥
Connotation: - इस संसार में जो पुरुष धनाढ्य हो, वह निर्धनों को उद्योग कराके निरन्तर पालन करे। जो सत् श्रेष्ठ कर्मों में बढ़ते उन्नत होते हैं, उन को धन्यवाद और धनादि पदार्थों के दान से उत्साहयुक्त करे ॥६॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनः स राजा किं कुर्यादित्याह ॥

Anvay:

हे सुक्रतो ! यः सुशंसो दक्षते तं विश्वमृत्विजं नोऽस्मांश्चर्ते त्वमा शिशीहि। हि यतस्त्वं रत्नधा असि तस्माद्यजमानाय रत्नं कृधि ॥६॥

Word-Meaning: - (कृधि) कुरु (रत्नम्) रमणीयं धनम् (यजमानाय) परोपकारार्थं यज्ञं कुर्वते (सुक्रतो) उत्तमप्रज्ञ धर्म्यकर्मकर्त्तः (त्वम्) (हि) यतः (रत्नधाः) यो रत्नानि धनानि दधाति सः (असि) (आ) (नः) अस्मान् (ऋते) सत्यभाषणादिरूपे सङ्गन्तव्ये व्यवहारे (शिशीहि) तीव्रोद्योगिनः कुरु (विश्वम्) समग्रम् (ऋत्विजम्) य ऋतूनर्हति तम् (सुशंसः) सुष्ठुप्रशंसः (यः) (च) (दक्षते) वर्धते ॥६॥
Connotation: - अस्मिन् संसारे यो धनाढ्यः स्यात्स प्रीत्या निर्धनानुद्योगं कारयित्वा सततं पालयेत्। ये सत्क्रियायां वर्धन्ते तान् धन्यवादेन धनादिदानेन च प्रोत्साहयेत् ॥६॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - या जगात जो पुरुष धनवान असेल त्याने निर्धनांना उद्योग करावयास लावून त्यांचे निरंतर पालन करावे. जे सत् कर्माने वाढून उन्नत होतात त्यांना धन्यवाद द्यावेत व धन इत्यादी पदार्थ दान करून उत्साहयुक्त करावे. ॥ ६ ॥