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त्वम॑ग्ने गृ॒हप॑ति॒स्त्वं होता॑ नो अध्व॒रे। त्वं पोता॑ विश्ववार॒ प्रचे॑ता॒ यक्षि॒ वेषि॑ च॒ वार्य॑म् ॥५॥

English Transliteration

tvam agne gṛhapatis tvaṁ hotā no adhvare | tvam potā viśvavāra pracetā yakṣi veṣi ca vāryam ||

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Pad Path

त्वम्। अ॒ग्ने॒। गृ॒हऽप॑तिः। त्वम्। होता॑। नः॒। अ॒ध्व॒रे। त्वम्। पोता॑। वि॒श्व॒ऽवा॒र॒। प्रऽचे॑ताः। यक्षि॑। वेषि॑। च॒। वार्य॑म् ॥५॥

Rigveda » Mandal:7» Sukta:16» Mantra:5 | Ashtak:5» Adhyay:2» Varga:21» Mantra:5 | Mandal:7» Anuvak:1» Mantra:5


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर मनुष्य कैसा हो, इस विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥

Word-Meaning: - हे (विश्ववार) सब को स्वीकार करने योग्य (अग्ने) अग्नि के तुल्य प्रकाशमान (गृहपतिः) घर के रक्षक ! (त्वम्) आप (नः) हमारे (अध्वरे) अहिंसादि लक्षणयुक्त धर्म के आचरण में (होता) दाता (त्वम्) (पोता) पवित्रकर्त्ता (त्वम्) आप (प्रचेताः) अच्छे प्रकार जतानेवाले आप (वार्य्यम्) स्वीकार योग्य धर्मयुक्त व्यवहार को (यक्षि) सङ्गत करते (च) और (वेषि) व्याप्त होते हैं, उन आपकी हम लोग याचना करते हैं ॥५॥
Connotation: - इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। पूर्व मन्त्र से यहाँ (ईमहे) पद की अनुवृत्ति आती है। जैसे अग्नि घर का पालक, सुखदाता, यज्ञ में पवित्रकर्त्ता, शरीर में चेतनता करानेवाला, सब विश्व का सङ्ग करता और व्याप्त होता है, वैसे ही मनुष्य होवें ॥५॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनर्मनुष्यः कीदृशः स्यादित्याह ॥

Anvay:

हे विश्ववाराग्ने यो वह्निरिव गृहपतिस्त्वं नोऽध्वरे होता त्वं प्रचेता वार्य्यं यक्षि वेषि च तं त्वां वयमीमहे ॥५॥

Word-Meaning: - (त्वम्) (अग्ने) वह्निरिव प्रकाशमान (गृहपतिः) गृहस्य पालकः (त्वम्) (होता) दाता (नः) अस्माकम् (अध्वरे) अहिंसादिलक्षणे धर्माचरणे (त्वम्) (पोता) पवित्रकर्त्ता (विश्ववार) सर्वैर्वरणीय (प्रचेताः) प्रकर्षेण प्रज्ञापकः (यक्षि) यजसि सङ्गच्छसे (वेषि) व्याप्नोषि (च) (वार्यम्) वरणीयं धर्म्यं व्यवहारम् ॥५॥
Connotation: - अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः। पूर्वस्मान् मन्त्रात् (ईमहे) इति पदमनुवर्त्तते। यथाऽग्निर्गृहपालकः सुखदाताऽध्वरे पवित्रकर्त्ता शरीरे चेतयिता सर्वं विश्वं सङ्गच्छते व्याप्नोति च तथैव मनुष्या भवन्तु ॥५॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. पूर्वीच्या मंत्रातील (ईमहे) या पदाची अनुवृत्ती झालेली आहे. जसा अग्नी गृहपालक, सुखदाता, यज्ञात पवित्रकर्ता, शरीरात चेतनता आणणारा, सर्व विश्वाच्या संगतीत राहणारा असून व्याप्तही असतो तसे माणसाने बनावे. ॥ ५ ॥