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तं त्वा॑ दू॒तं कृ॑ण्महे य॒शस्त॑मं दे॒वाँ आ वी॒तये॑ वह। विश्वा॑ सूनो सहसो मर्त॒भोज॑ना॒ रास्व॒ तद्यत्त्वेम॑हे ॥४॥

English Transliteration

taṁ tvā dūtaṁ kṛṇmahe yaśastamaṁ devām̐ ā vītaye vaha | viśvā sūno sahaso martabhojanā rāsva tad yat tvemahe ||

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Pad Path

तम्। त्वा॒। दु॒तम्। कृ॒ण्म॒हे॒। य॒शःऽत॑मम्। दे॒वान्। आ। वी॒तये॑। व॒ह॒। विश्वा॑। सू॒नो॒ इति॑। स॒ह॒सः॒। म॒र्त॒ऽभोज॑ना। रास्व॑। तत्। यत्। त्वा॒। ईम॑हे ॥४॥

Rigveda » Mandal:7» Sukta:16» Mantra:4 | Ashtak:5» Adhyay:2» Varga:21» Mantra:4 | Mandal:7» Anuvak:1» Mantra:4


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर राजादि मनुष्य क्या करें, इस विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥

Word-Meaning: - हे (सहसः) बलवान् के (सूनो) पुत्र विद्वन् ! जैसे हम लोग (यशस्तमम्) अतिशय कीर्ति करनेवाले (तम्) उस अग्नि को (दूतम्) दूत (कृण्महे) करते, वैसे (त्वा) आपको मुख्य करते हैं आप (वीतये) विज्ञानादि को प्राप्त करने के लिये (देवान्) दिव्य गुणों वा पदार्थों को (आ, वह) अच्छे प्रकार प्राप्त हूजिये वा कीजिये (विश्वा) सब (मर्त्तभोजना) मनुष्यों के भोजनों वा पालनों को (रास्व) दीजिये जैसे (यत्) जिस अग्नि को कार्यसिद्धि के लिये प्रयुक्त करते, वैसे (तत्) उसको और (त्वा) आपको (ईमहे) याचना करते हैं ॥४॥
Connotation: - इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। जो सब कार्यों के साधक विद्युत् अग्नि के दूत और राजकार्यों के साधक विद्या वा विनय से युक्त पुरुष को राजा करते हैं, वे सब ऐश्वर्य और पालन को प्राप्त होते हैं ॥४॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुना राजादयो मनुष्याः किं कुर्य्युरित्याह ॥

Anvay:

हे सहसस्सूनो विद्वन् ! यथा वयं यशस्तमं तमग्निं दूतं कृण्महे तथा त्वा मुख्यं कृण्महे त्वं वीतये देवाना वह विश्वा मर्त्तभोजना रास्व यथा यद्यमग्निं कार्यसिद्धये प्रयुञ्जमहे तथा तत्तं त्वेमहे ॥४॥

Word-Meaning: - (तम्) (त्वा) त्वाम् (दूतम्) (कृण्महे) (यशस्तमम्) अतिशयेन कीर्तिकारकम् (देवान्) दिव्यगुणान् पदार्थान् वा (आ) (वीतये) विज्ञानादिप्राप्तये (वह) प्राप्नुहि प्रापय वा (विश्वा) सर्वाणि (सूनो) अपत्य (सहसः) बलवतः (मर्त्तभोजना) मर्त्तानां मनुष्याणां भोजनानि पालनानि (रास्व) देहि (तत्) तम् (यत्) यम् (त्वा) त्वाम् (ईमहे) याचामहे ॥४॥
Connotation: - अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः। ये सर्वकार्य्यसाधकं विद्युदग्निं दूतं राजकार्य्यसाधकं विद्याविनयान्वितं पुरुषं राजानं च कुर्वन्ति ते समग्रमैश्वर्यं पालनं च लभन्ते ॥४॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. जे सर्व कार्य करणाऱ्या विद्युत अग्नीला दूत व राज्य कार्य करणाऱ्या व विद्यायुक्त पुरुषाला राजा करतात त्यांना सर्व ऐश्वर्य प्राप्त होऊन त्यांचे पालन होते. ॥ ४ ॥