Go To Mantra

ये राधां॑सि॒ दद॒त्यश्व्या॑ म॒घा कामे॑न॒ श्रव॑सो म॒हः। ताँ अंह॑सः पिपृहि प॒र्तृभि॒ष्ट्वं श॒तं पू॒र्भिर्य॑विष्ठ्य ॥१०॥

English Transliteration

ye rādhāṁsi dadaty aśvyā maghā kāmena śravaso mahaḥ | tām̐ aṁhasaḥ pipṛhi partṛbhiṣ ṭvaṁ śatam pūrbhir yaviṣṭhya ||

Mantra Audio
Pad Path

ये। राधां॑सि। दद॑ति। अश्व्या॑। म॒घा। कामे॑न। श्रव॑सः। म॒हः। तान्। अंह॑सः। पि॒पृ॒हि॒। प॒र्तृऽभिः। त्वम्। श॒तम्। पूः॒ऽभिः। य॒वि॒ष्ठ्य॒ ॥१०॥

Rigveda » Mandal:7» Sukta:16» Mantra:10 | Ashtak:5» Adhyay:2» Varga:22» Mantra:4 | Mandal:7» Anuvak:1» Mantra:10


Reads times

SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर वह राजा प्रजाजनों के प्रति कैसे वर्त्ते, इस विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥

Word-Meaning: - हे (यविष्ठ्य) अतिशय कर जवानों में श्रेष्ठ राजन् ! (ये) जो (महः) बड़े (श्रवसः) अन्न की (कामेन) कामना से (शतम्) सैकड़ों (मघा) स्वीकार करने योग्य (अश्व्या) महत् लोगों में प्रकट होनेवाले (राधांसि) धनों को सब को (ददति) देते हैं (तान्) उनको (पर्त्तृभिः) रक्षक (पूर्भिः) नगरियों के साथ (त्वम्) आप (अंहसः) दुष्टाचरण से (पिपृहि) रक्षा कीजिये ॥१०॥
Connotation: - हे राजन् ! जो धर्मात्मा उद्योगी जनों को उनसे श्रम करा के धन और अन्न देते हैं, उन नगरी और पालकों के साथ वर्त्तमानों को अधर्माचरण से पृथक् रक्खो, जिससे धर्मपूर्वक उद्योग से पुष्कल धन और अन्न पाकर जगत् के हितार्थ निरन्तर दान करें ॥१०॥
Reads times

SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनः स राजा प्रजाजनान् प्रति कथं वर्तेत इत्याह ॥

Anvay:

हे यविष्ठ्य राजन् ! ये महः श्रवसः कामेन शतं मघाऽश्व्या राधांसि सर्वेभ्यो ददति तान्पर्तृभिः पूर्भिस्त्वमंहसः पिपृहि ॥१०॥

Word-Meaning: - (ये) (राधांसि) धनानि (ददति) (अश्व्या) महत्सु भवानि (मघा) पूजनीयानि (कामेन) इच्छया (श्रवसः) अन्नस्य (महः) महतः (तान्) (अंहसः) दुष्टाचारात् (पिपृहि) पालय (पर्तृभिः) पालकैः (त्वम्) (शतम्) असंख्यम् (पूर्भिः) नगरीभिः (यविष्ठ्य) येऽतिशयेन युवानस्तेषु साधो ॥१०॥
Connotation: - हे राजन् ! ये धर्मात्मभ्य उद्योगिभ्यः श्रमं कारयित्वा धनाऽन्नानि प्रयच्छन्ति तान्नगरीभिः पालकैस्सह वर्त्तमानानधर्माचरणात्पृथग् रक्षयत एते धर्मेणोद्योगेन पुष्कलं धनाऽन्नं प्राप्य जगद्धिताय सततं दानं कुर्य्युः ॥१०॥
Reads times

MATA SAVITA JOSHI

N/A

Word-Meaning: - N/A
Connotation: - हे राजा ! जे धार्मिक उद्योगी लोकांकडून श्रम करवून घेऊन त्यांना अन्न व धन देतात त्या नगरीतील लोकांना अधर्माचरणापासून पृथक ठेव व जगाच्या हितासाठी धर्मपूर्वक उद्योग करून पुष्कळ धन व अन्न प्राप्त करून सदैव दान कर. ॥ १० ॥