ए॒ना वो॑ अ॒ग्निं नम॑सो॒र्जो नपा॑त॒मा हु॑वे। प्रि॒यं चेति॑ष्ठमर॒तिं स्व॑ध्व॒रं विश्व॑स्य दू॒तम॒मृत॑म् ॥१॥
enā vo agniṁ namasorjo napātam ā huve | priyaṁ cetiṣṭham aratiṁ svadhvaraṁ viśvasya dūtam amṛtam ||
ए॒ना। वः॒। अ॒ग्निम्। नम॑सा। ऊ॒र्जः। नपा॑तम्। आ। हु॒वे॒। प्रि॒यम्। चेति॑ष्ठम्। अ॒र॒तिम्। सु॒ऽअ॒ध्व॒रम्। विश्व॑स्य। दू॒तम्। अ॒मृत॑म् ॥१॥
SWAMI DAYANAND SARSWATI
अब राजा प्रजा के सुख के लिये क्या-क्या करे, इस विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥
SWAMI DAYANAND SARSWATI
अथ राजा प्रजासुखाय किं किं कुर्य्यादित्याह ॥
हे प्रजाजना ! यथाऽहं राजा व एना नमसोर्जो नपातं प्रियं चेतिष्ठमरतिं स्वध्वरममृतं विश्वस्य दूतमग्निमिवोपदेशकमाहुवे तथा यूयमप्येतमाह्वयत ॥१॥
MATA SAVITA JOSHI
या सूक्तात अग्नी, विद्वान, राजा, यजमान, पुरोहित, उपदेशक व विद्यार्थ्यांच्या कृत्याचे वर्णन असल्यामुळे या सूक्ताच्या अर्थाची पूर्व सूक्तार्थाबरोबर संगती जाणावी.