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स्पा॒र्हा यस्य॒ श्रियो॑ दृ॒शे र॒यिर्वी॒रव॑तो यथा। अग्रे॑ य॒ज्ञस्य॒ शोच॑तः ॥५॥

English Transliteration

spārhā yasya śriyo dṛśe rayir vīravato yathā | agre yajñasya śocataḥ ||

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Pad Path

स्पा॒र्हा। यस्य॑। श्रियः॑। दृ॒शे। र॒यिः। वी॒रऽव॑तः। य॒था॒। अग्रे॑। य॒ज्ञस्य॑। शोच॑तः ॥५॥

Rigveda » Mandal:7» Sukta:15» Mantra:5 | Ashtak:5» Adhyay:2» Varga:18» Mantra:5 | Mandal:7» Anuvak:1» Mantra:5


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

किसका धन प्रशंसनीय होता है, इस विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥

Word-Meaning: - हे मनुष्यो ! (यस्य) जिस (वीरवतः) वीरोंवाले के (स्पार्हाः) चाहना करने योग्य (श्रियः) लक्ष्मी शोभाएँ (दृशे) देखने को योग्य हों वह (यथा) जैसे (अग्रे) पहिले (शोचतः) पवित्र (यज्ञस्य) सङ्ग के योग्य व्यवहार का साधक (रयिः) धन है, वैसे सत्क्रिया का सिद्ध करनेवाला हो ॥५॥
Connotation: - इस मन्त्र में उपमालङ्कार है । उसी का धन सफल है, जिसने न्याय से उपार्जन किया धन धर्मयुक्त व्यवहार में व्यय किया होवे ॥५॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

कस्य धनं प्रशंसनीयं भवेदित्याह ॥

Anvay:

हे मनुष्या ! यस्य वीरवतस्स्पार्हाः श्रियो दृशे योग्याः स यथाऽग्रे शोचतो यज्ञस्य साधको रयिरस्ति तथा सत्क्रियासिद्धिकरः स्यात् ॥५॥

Word-Meaning: - (स्पार्हाः) स्पृहणीयाः (यस्य) (श्रियः) (दृशे) द्रष्टुम् (रयिः) धनम् (वीरवतः) वीरा विद्यन्ते यस्य तस्य (यथा) (अग्रे) (यज्ञस्य) सङ्गन्तव्यस्य व्यवहारस्य (शोचतः) पवित्रस्य ॥५॥
Connotation: - अत्रोपमालङ्कारः । तस्यैव धनं सफलं येन न्यायेनोपार्जितं धर्म्ये व्यवहारे व्ययितं स्यात् ॥५॥
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MATA SAVITA JOSHI

N/A

Word-Meaning: - N/A
Connotation: - जो न्यायाने धन उपार्जित करून धर्मव्यवहारात खर्च करतो त्याचेच धन सत्कारणी लागते. ॥ ५ ॥