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जा॒तो यद॑ग्ने॒ भुव॑ना॒ व्यख्यः॑ प॒शून्न गो॒पा इर्यः॒ परि॑ज्मा। वैश्वा॑नर॒ ब्रह्म॑णे विन्द गा॒तुं यू॒यं पा॑त स्व॒स्तिभिः॒ सदा॑ नः ॥३॥

English Transliteration

jāto yad agne bhuvanā vy akhyaḥ paśūn na gopā iryaḥ parijmā | vaiśvānara brahmaṇe vinda gātuṁ yūyam pāta svastibhiḥ sadā naḥ ||

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Pad Path

जा॒तः। यत्। अ॒ग्ने॒। भुव॑ना। वि। अख्यः॑। प॒शून्। न। गो॒पाः। इर्यः॑। परि॑ऽज्मा। वैश्वा॑नर। ब्रह्म॑णे। वि॒न्द॒। गा॒तुम्। यू॒यम्। पा॒त॒। स्व॒स्तिऽभिः॑। सदा॑। नः॒ ॥३॥

Rigveda » Mandal:7» Sukta:13» Mantra:3 | Ashtak:5» Adhyay:2» Varga:16» Mantra:3 | Mandal:7» Anuvak:1» Mantra:3


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर वे संन्यासी कैसे हों, इस विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥

Word-Meaning: - हे (वैश्वानर) सब मनुष्यों में प्रकाश करनेवाले (अग्ने) अग्नि के तुल्य तेजस्वि विद्वन् संन्यासिन् ! जैसे (जातः) उत्पन्न हुआ अग्नि (भुवना) लोक-लोकान्तरों को (वि, अख्यः) विशेष कर प्रकाशित करता है, वैसे (यत्) जो आप विद्याओं में प्रसिद्ध मनुष्यों के आत्माओं को प्रकाशित कीजिये तथा (पशून्) गौ आदि को (गोपाः) पशुरक्षकों के (न) तुल्य (इर्यः) सत्य मार्ग में प्रेरक और (परिज्मा) सब ओर से प्राप्त होनेवाले हूजिये वह आप (ब्रह्मणे) परमेश्वर, वेद वा चार वेदों के ज्ञाता के लिये (गातुम्) प्रशस्त भूमि को (विन्द) प्राप्त हूजिये (यूयम्) तुम संन्यासी लोग सब (स्वस्तिभिः) स्वस्थता के हेतु क्रियाओं और सत्य उपदेशों से (नः) हमारी (सदा) (पात) रक्षा करो ॥३॥
Connotation: - इस मन्त्र में उपमावाचकलुप्तोपमालङ्कार हैं। जो सूर्य के तुल्य, परोपकार, विद्या और उपदेश जिनके प्रसिद्ध हैं, वे जैसे गौएँ बछड़ों की रक्षा करती, वैसे विद्यादान से सब की रक्षा करनेवाले सर्वदा घूमते हुए वेद, ईश्वर को जानने के लिये राज्यरक्षणार्थ राजा के तुल्य न्यायशील होकर सब सुखों को बोध कराते वे सदा सब को सत्कार करने योग्य होते हैं ॥३॥ इस सूक्त में अग्नि के दृष्टान्त से संन्यासियों के गुणों का वर्णन होने से इस सूक्त के अर्थ की इससे पूर्व सूक्त के अर्थ के साथ सङ्गति जाननी चाहिये ॥ यह तेरहवाँ सूक्त और सोलहवाँ वर्ग समाप्त हुआ ॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनस्ते यतयः कीदृशा भवेयुरित्याह ॥

Anvay:

हे वैश्वानराग्ने यते ! यथा जातोऽग्निर्भुवना व्यख्यस्तथा यद्यस्त्वं विद्यासु प्रसिद्धजनानामात्मनः प्रकाशय पशून् गोपा नेर्यः परिज्मा भव स त्वं ब्रह्मणे गातुं विन्द यूयं संन्यासिनः सर्वे स्वस्तिभिः सत्योपदेशनैर्नः सदा पात ॥३॥

Word-Meaning: - (जातः) उत्पन्नः (यत्) यः (अग्ने) अग्निरिव विद्वन् (भुवना) लोकलोकान्तरान् (वि) विशेषेण (अख्यः) प्रकाशयति (पशून्) गवादीन् (न) इव (गोपाः) गोपालाः पशुरक्षकाः (इर्यः) सत्यमार्गे प्रेरकः (परिज्मा) परितः सर्वतोऽजति गच्छति (वैश्वानर) विश्वेषु नरेषु प्रकाशक (ब्रह्मणे) परमेश्वराय वेदाय वाऽथवा चतुर्वेदविदे (विन्द) प्राप्नुहि (गातुम्) प्रशंसितां भूमिम् (यूयम्) (पात) (स्वस्तिभिः) स्वास्थ्यकारिणीभिः क्रियाभिः (सदा) सर्वदा (नः) अस्मान् ॥३॥
Connotation: - अत्रोपमावाचकलुप्तोपमालङ्कारौ। ये सूर्यवत्प्रख्यातपरोपकारविद्योपदेशा वत्सान् गाव इव विद्यादानेन सर्वेषां रक्षकाः सर्वदा भ्रमन्तो वेदेश्वरविज्ञानाय राज्यरक्षणाय नृप इव न्यायशीला भूत्वा सर्वानज्ञान् बोधयन्ति ते सदैव सर्वैः सत्कर्त्तव्या भवन्तीति ॥३॥ अत्राग्निदृष्टान्तेन संन्यासिगुणवर्णनादेतदर्थस्य पूर्वसूक्तार्थेन सह सङ्गतिर्वेद्या ॥ इति त्रयोदशं सूक्तं षोडशो वर्गश्च समाप्तः ॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - या मंत्रात उपमा व वाचकलुप्तोपमालंकार आहेत. जे (संन्यासी) सूर्याप्रमाणे परोपकार, विद्या व उपदेशात प्रसिद्ध असून गाई जशा वासरांचे रक्षण करतात तसे विद्यादान करून सर्वांचे रक्षक व सदैव भ्रमन्ती करणारे, वेद व ईश्वराला जाणण्यासाठी व राज्यरक्षणासाठी राजाप्रमाणे न्यायाधीश बनून सर्वांना बोध करवितात ते सदैव सत्कार करण्यायोग्य असतात. ॥ ३ ॥