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उलू॑कयातुं शुशु॒लूक॑यातुं ज॒हि श्वया॑तुमु॒त कोक॑यातुम् । सु॒प॒र्णया॑तुमु॒त गृध्र॑यातुं दृ॒षदे॑व॒ प्र मृ॑ण॒ रक्ष॑ इन्द्र ॥

English Transliteration

ulūkayātuṁ śuśulūkayātuṁ jahi śvayātum uta kokayātum | suparṇayātum uta gṛdhrayātuṁ dṛṣadeva pra mṛṇa rakṣa indra ||

Pad Path

उलू॑कऽयातुम् । शु॒शु॒लूक॑ऽयातुम् । ज॒हि । श्वऽया॑तुम् । उ॒त । कोक॑ऽयातुम् । सु॒प॒र्णऽया॑तुम् । उ॒त । गृध्र॑ऽयातुम् । दृ॒षदा॑ऽइव । प्र । मृ॒ण॒ । रक्षः॑ । इ॒न्द्र॒ ॥ ७.१०४.२२

Rigveda » Mandal:7» Sukta:104» Mantra:22 | Ashtak:5» Adhyay:7» Varga:9» Mantra:2 | Mandal:7» Anuvak:6» Mantra:22


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ARYAMUNI

Word-Meaning: - (उलूकयातुम्) जो बड़ा समुदाय बनाकर तथा (शुशुलूकयातुम्) छोटे छोटे समुदाय बनाकर न्यायकारियों पर अभिघात करते हैं, (श्वयातुम्) जो गमनशील हैं तथा जो (कोकयातुम्) विभक्त होकर अभिघात करते हैं (सुपर्णयातुम्) तथा जो निरपराधों को सताते हैं और जो (गृध्रयातुम्) चक्रवर्ती होने की इच्छा से न्यायकारियों का दमन करना चाहते हैं, उनको (इन्द्र) ऐश्वर्यवान् परमात्मन् ! (जहि) अत्यन्त नष्ट करो (दृषदा, इव) तथा शिला के समान शस्त्रों से (प्र मृण)  पेषण करो और (रक्ष) न्यायकारियों को बचाओ ॥
Connotation: - इस मन्त्र में परमात्मा ने अन्यायकारी मायावी और नानाप्रकार से न्यायकारियों पर आघात करनेवाले दुष्टों से बचने के लिये प्रार्थना का उपदेश किया है। यद्यपि प्रार्थना केवल वाणीमात्र से सफल नहीं होती, तथापि जब हार्दिक भाव से प्रार्थना की जाती है, तो उससे उद्योग उत्पन्न होकर मनुष्य अवश्यमेव कृतकार्य होता है ॥२२॥
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ARYAMUNI

Word-Meaning: - (उलूकयातुम्) दीर्घसमुदायं निर्माय विद्यमानाः तथा (शुशुलूकयातुम्) लघुसमुदायवन्तञ्च ये दस्यवो न्याय्यमाचरन्तमभिघ्नन्ति (श्वयातुम्) ये हि बलवदादायापसरणे दक्षाः (कोकयातुम्) ये कोकवत् विभक्ता भूत्वाऽभिहन्तारः (सुपर्णयातुम्) निरपराधजनस्य तापकाः (गृध्रयातुम्) चक्रवर्त्तिनो बुभूषवः न्यायचारिणां तापकाः तान्सर्वान् (इन्द्र) हे भगवन् ! (जहि) नाशय (दृषदा, इव) शिलयेव शस्त्रेण (प्र, मृण) पिनष्टु (रक्ष) सतः पालय ॥२२॥