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इन्द्रो॑ यातू॒नाम॑भवत्पराश॒रो ह॑वि॒र्मथी॑नाम॒भ्या॒३॒॑विवा॑सताम् । अ॒भीदु॑ श॒क्रः प॑र॒शुर्यथा॒ वनं॒ पात्रे॑व भि॒न्दन्त्स॒त ए॑ति र॒क्षस॑: ॥

English Transliteration

indro yātūnām abhavat parāśaro havirmathīnām abhy āvivāsatām | abhīd u śakraḥ paraśur yathā vanam pātreva bhindan sata eti rakṣasaḥ ||

Pad Path

इन्द्रः॑ । या॒तू॒नाम् । अ॒भ॒व॒त् । प॒रा॒ऽश॒रः । ह॒विः॒ऽमथी॑नाम् । अ॒भि । आ॒ऽविवा॑सताम् । अ॒भि । इत् । ऊँ॒ इति॑ । श॒क्रः । प॒र॒शुः । यथा॑ । वन॑म् । पात्रा॑ऽइव । भि॒न्दन् । स॒तः । ए॒ति॒ । र॒क्षसः॑ ॥ ७.१०४.२१

Rigveda » Mandal:7» Sukta:104» Mantra:21 | Ashtak:5» Adhyay:7» Varga:9» Mantra:1 | Mandal:7» Anuvak:6» Mantra:21


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ARYAMUNI

Word-Meaning: - (इन्द्रः) ऐश्वर्यशाली परमात्मा (हविर्मथीनाम्) जो सत्कर्मरूपी यज्ञों में विघ्न करनेवाले हैं तथा (अभि, आविवासताम्) हानि करने की इच्छा से जो सम्मुख आनेवाले (यातूनाम्) राक्षस हैं, उनका (पराशरः) नाशक है। (शक्रः) परमात्मा  (परशुः, यथा, वनम्) परशु जैसे वन को (पात्रा, इव, भिन्दन्) और मुग्दर जैसे मृण्मय पात्र को तोड़ता है, उसी प्रकार (अभि, इत्, उ) निश्चय करके चारों ओर से (रक्षसः) राक्षसों को मारने में (सतः, ऐति) उद्यत रहता है ॥२१॥
Connotation: - परमात्मा असत्कर्मी राक्षसों के मारने के लिये सदैव वज्र उठाये उद्यत रहता है, इसी अभिप्राय से उपनिषद् में कहा है कि ‘महद्भयं वज्रमुद्यतमिव’ परमात्मा वज्र उठाये पुरुष के समान अत्यन्त भयरूप है। यद्यपि परमात्मा शान्तिमय, सर्वप्रिय और सर्वव्यापक है, जिसमें निराकार और क्रोधरहित होने से वज्र का उठाना असम्भव है, तथापि उसके न्याय-नियम ऐसे बने हुए हैं कि उसको अनन्तशक्तियें दण्डनीय दुष्टाचारी राक्षसों के लिये सदैव वज्र उठाये रहती हैं, इसी अभिप्राय से मुग्दरादि सदैव काम करते हैं, कुछ परमात्मा के हाथों से नहीं ॥२१॥
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ARYAMUNI

Word-Meaning: - (इन्द्रः) ऐश्वर्यवानीश्वरः (हविर्मथीनाम्) ये सत्कर्मात्मकयज्ञेषु विघ्नकर्तारः (अभि, आविवासताम्) जिघांसयाऽभिमुखमायातारः   (यातूनाम्) राक्षसाः सन्ति तेषां (पराशरः) नाशकोऽस्ति। (शक्रः) शक्तिमान् परमात्मा (परशुः, यथा, वनम्) यथा व्रश्चनो वनं छिनत्ति (पात्रा, इव, भिन्दन्) यथा मुग्दरो मृण्मयपात्राणि चूर्णयति, तथैव (अभि, इत्, उ) अभितो निश्चयेन (रक्षसः) राक्षसान्हन्तुम् (सतः, एति) उद्यतः संस्तिष्ठति ॥२१॥