Word-Meaning: - (गोमायुः) सुन्दर शब्दोंवाले वर्षाकालोद्भव जन्तु और (अजमायुः) प्रकृत्यनुसारी शब्दोंवाले (पृश्निः) विचित्र वर्णोंवाले (हरितः) हरित वर्णोंवाले, ये सब अपनी रचना से (नः) हमको (अदात्) शिक्षा देवें। (गवां, मण्डूकाः) अपनी शिक्षा द्वारा विद्यारूपी चमत्कार को बढ़ानेवाले जीव (शतानि, ददतः) सैकड़ों प्रकार की हमको शिक्षा देवें और परमात्मा (वसूनि) ऐश्वर्य और (आयुः) आयु को (प्र, तिरन्ते) बढ़ावें और (सहस्रसावे) ‘सहस्रप्रकारकाणि ओषधानि सूयन्तेऽस्मिन्निति ‘सहस्रसाव’ वर्षाकालः श्रावणमासो वा’ अनन्त प्रकार की ओषधियें जिसमें उत्पन्न होती हैं, उस वर्षाकाल वा श्रावण मास को ‘सहस्रसाव’ कहते हैं, उस काल में परमात्मा हमको उक्त प्रकार के जीवों से अनन्त प्रकार की शिक्षालाभ कराये और हमारे ऐश्वर्य और आयु को बढ़ाये ॥१०॥
Connotation: - परमात्मा उपदेश करते हैं कि हे जीवो ! तुम वर्षाकाल से अनन्त प्रकार की शिक्षा का लाभ करो और अपने ऐश्वर्य और आयु की वृद्धि की प्रार्थना करो। यद्यपि केवल प्रार्थना से ऐश्वर्य और आयु की वृद्धि नहीं होती, तथापि जिसके हृदय में आयुर्वृद्धि और ऐश्वर्यवृद्धि का भाव उत्पन्न होता है, वह उसकी प्राप्ति के लिये यज्ञ अवश्य करता है। इस नियम के अनुसार परमात्मा ने जीवों को प्रार्थना का उपदेश प्रधानरूप से दिया है, अस्तु। मुख्य प्रसङ्ग यह है कि वर्षाऋतु का वर्णन इस सूक्त से भलीभाँति किया गया है और वर्षाऋतु का मण्डन करनेवाले मण्डूकादि जीवों की रचना से शिक्षालाभ का उपदेश इस सूक्त का तात्पर्य है। जो लोग यह कहा करते हैं कि वेद में ऐसे भी सूक्त हैं, जिनके मण्डूक देवता हैं, उनको यह समझ लेना चाहिये कि मण्डूक देवता होना कोई निन्दा की बात नहीं, वेदों के महत्त्व की बात है, क्योंकि जब देवता शब्द के अर्थ यह हैं कि ‘दीव्यतीति देवः’ जो प्रकाश करे, तो क्या मण्डूक किसी विद्या का प्रकाश नहीं करते, यदि न करते तो बाईआलोजी विद्या में मण्डूकादि जन्तुओं की आवश्यकता क्यों पड़ती ? इससे स्पष्ट सिद्ध है कि परमात्मा ने सब विद्याओं का मूलभूत बीज वेद में पहले से ही रख दिया है। दूसरी बात यह है कि यदि वेद में वर्षाऋतु का वर्णन न होता, तो कवि लोग कहाँ से इसका वर्णन करते। सच तो यह है कि जिस सौन्दर्य के साथ इस सूक्त में वर्षाऋतु का वर्णन किया है, उस सौन्दर्य्य के साथ आदिकवि वाल्मीकि भी वर्षाऋतु को वर्णन नहीं कर सके। इससे अधिक वेदों का महत्त्व और क्या हो सकता है कि सबसे उत्तम साहित्य और सर्वोपरि पदार्थविद्या का वर्णन वेद के अनेक सूक्तों में पाया जाता है ॥१०॥ यह १०३वाँ सूक्त और चौथा वर्ग समाप्त हुआ ॥