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म॒न्द्रं होता॑रमु॒शिजो॒ यवि॑ष्ठम॒ग्निं विश॑ ईळते अध्व॒रेषु॑। स हि क्षपा॑वाँ॒ अभ॑वद्रयी॒णामत॑न्द्रो दू॒तो य॒जथा॑य दे॒वान् ॥५॥

English Transliteration

mandraṁ hotāram uśijo yaviṣṭham agniṁ viśa īḻate adhvareṣu | sa hi kṣapāvām̐ abhavad rayīṇām atandro dūto yajathāya devān ||

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Pad Path

म॒न्द्रम्। होता॑रम्। उ॒शिजः॑। यवि॑ष्ठम्। अ॒ग्निम्। विशः॑। ई॒ळ॒ते॒। अ॒ध्व॒रेषु॑। सः। हि। क्षपा॑ऽवान्। अभ॑वत्। र॒यी॒णाम्। अत॑न्द्रः। दू॒तः। य॒जथा॑य। दे॒वान् ॥५॥

Rigveda » Mandal:7» Sukta:10» Mantra:5 | Ashtak:5» Adhyay:2» Varga:13» Mantra:5 | Mandal:7» Anuvak:1» Mantra:5


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

मनुष्य प्रतिदिन किस का खोज करें, इस विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥

Word-Meaning: - हे मनुष्यो जिसको (अध्वरेषु) अग्निहोत्रादिक्रियारूप व्यवहारों में (मन्द्रम्) आनन्दकारी (होतारम्) दाता (यविष्ठम्) अतिजवान के तुल्य (अग्निम्) अग्नि की (उशिजः) कामना करते हुए (विशः) प्रजाजन (ईळते) स्तुति वा खोज करते हैं (सः, हि) वही (क्षपावान्) बहुत रात्रियोंवाला (अतन्द्रः) आलस्यरहित (दूतः) दूत के समान (रयीणाम्) द्रव्यों की (यजथाय) प्राप्ति के लिये (देवान्) दिव्यगुणों के प्राप्त करने को समर्थ (अभवत्) होता है ॥५॥
Connotation: - जो अग्नि, दूत के तुल्य सब विद्याओं का सङ्ग करनेवाला होता है, उसका सब मनुष्य खोज करें, जिससे सब गुणों की प्राप्ति हो ॥५॥ इस सूक्त में अग्नि, विद्वान् और विदुषी के कर्त्तव्य का वर्णन होने से इस सूक्त के अर्थ की इससे पूर्व सूक्त के अर्थ के साथ सङ्गति जाननी चाहिये ॥ यह दशवाँ सूक्त और तेरहवाँ वर्ग समाप्त हुआ ॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

मनुष्याः कस्यान्वेषणं प्रत्यहं कुर्युरित्याह ॥

Anvay:

हे मनुष्या ! यमध्वरेषु मन्द्रं होतारं यविष्ठमिवाग्निमुशिजो विश ईळते स हि क्षपावानतन्द्रो दूत इव रयीणां यजथाय देवान् प्रापयितुं समर्थोऽभवत् ॥५॥

Word-Meaning: - (मन्द्रम्) आनन्दकरम् (होतारम्) दातारम् (उशिजः) कामयमानाः (यविष्ठम्) अतिशयेन युवानमिव (अग्निम्) पावकम् (विशः) प्रजाः (ईळते) स्तुवन्त्यन्विच्छन्ति वा (अध्वरेषु) अग्निहोत्रादिक्रियामयव्यवहारेषु (सः) (हि) एव (क्षपावान्) बह्व्यः क्षपा रात्रयो विद्यन्ते यस्मिन् सः (अभवत्) भवति (रयीणाम्) द्रव्याणाम् (अतन्द्रः) अनलसः (दूतः) दूत इव (यजथाय) सङ्गमनाय (देवान्) दिव्यगुणान् ॥५॥
Connotation: - योऽग्निर्दूतवत्सर्वासां विद्यानां सङ्गमयिता वर्त्तते तं सर्वे मनुष्या अन्विच्छन्तु यतस्सर्वशुभगुणलाभः स्यादिति ॥५॥ अत्राऽग्निविद्वद्विदुषीकृत्यवर्णनादेतदर्थस्य पूर्वसूक्तार्थेन सह सङ्गतिर्वेद्या ॥ इति दशमं सूक्तं त्रयोदशो वर्गश्च समाप्तः ॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - जो अग्नी दूताप्रमाणे सर्व विद्यांचा संग करणारा असतो त्याचा सर्व लोकांनी शोध घ्यावा. ज्यामुळे सर्व शुभ गुणांची प्राप्ती व्हावी. ॥ ५ ॥