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अच्छा॒ गिरो॑ म॒तयो॑ देव॒यन्ती॑र॒ग्निं य॑न्ति॒ द्रवि॑णं॒ भिक्ष॑माणाः। सु॒सं॒दृशं॑ सु॒प्रती॑कं॒ स्वञ्चं॑ हव्य॒वाह॑मर॒तिं मानु॑षाणाम् ॥३॥

English Transliteration

acchā giro matayo devayantīr agniṁ yanti draviṇam bhikṣamāṇāḥ | susaṁdṛśaṁ supratīkaṁ svañcaṁ havyavāham aratim mānuṣāṇām ||

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Pad Path

अच्छ॑। गिरः॑। म॒तयः॑। दे॒व॒ऽयन्तीः॑। अ॒ग्निम्। य॒न्ति॒। द्रवि॑णम्। भिक्ष॑माणाः। सु॒ऽस॒न्दृश॑म्। सु॒ऽप्रती॑कम्। सु॒ऽअञ्च॑म्। ह॒व्य॒ऽवाह॑म्। अ॒र॒तिम्। मानु॑षाणाम् ॥३॥

Rigveda » Mandal:7» Sukta:10» Mantra:3 | Ashtak:5» Adhyay:2» Varga:13» Mantra:3 | Mandal:7» Anuvak:1» Mantra:3


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर स्त्रीपुरुष किसके तुल्य होकर कैसे स्वीकार करें, इस विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥

Word-Meaning: - हे मनुष्यो ! जो कन्या (मतयः) बुद्धि के तुल्य वर्त्तमान (गिरः) विद्यायुक्त वाणियों और (अच्छा) अच्छे प्रकार (देवयन्तीः) पतियों की कामना करती हुई (सुसन्दृशम्) अच्छे प्रकार देखने योग्य (सुप्रतीकम्) सुन्दर प्रतीति के साधन (स्वञ्चम्) सुन्दर प्रकार पूजने योग्य (मानुषाणाम्) मनुष्यों के सम्बन्ध से (हव्यवाहम्) होमने योग्य पदार्थों को देशान्तर पहुँचानेवाले (अरतिम्) सर्वत्र प्राप्त होनेवाले (द्रविणम्) धन वा यश को (भिक्षमाणाः) चाहती हुई (अग्निम्) विद्युत् की विद्या को (यन्ति) प्राप्त होती हैं, वे ही विवाहने योग्य होती हैं ॥३॥
Connotation: - इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। जैसे कन्या दीर्घ ब्रह्मचर्य के साथ विदुषी हो और अग्नि आदि की विद्या को प्राप्त हो के पुरुषों में से उत्तम-उत्तम पतियों को चाहती हुई अपने-अपने अभीष्ट स्वामी को प्राप्त होती हैं, वैसे पुरुषों को भी अपने अनुकूल स्त्रियों को प्राप्त होना चाहिये ॥३॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनः स्त्रीपुरुषाः किंवद्भूत्वा कथं स्वीकुर्य्युरित्याह ॥

Anvay:

हे मनुष्या ! याः कन्या मतय इव गिरोऽच्छ देवयन्तीः सुसन्दृशं सुप्रतीकं स्वञ्चं मानुषाणां हव्यवाहमरतिं द्रविणं भिक्षमाणा अग्निं यन्ति ता एव वरणीया भवन्ति ॥३॥

Word-Meaning: - (अच्छा) सम्यक्। अत्र संहितायामिति दीर्घः। (गिरः) विद्यायुक्ता वाचः (मतयः) प्रज्ञा इव वर्त्तमानाः कन्याः (देवयन्तीः) देवान्विदुषः पतीन् कामयमानाः (अग्निम्) विद्युद्विद्याम् (यन्ति) प्राप्नुवन्ति (द्रविणम्) धनं यशो वा (भिक्षमाणाः) याचमानाः (सुसन्दृशम्) सुष्ठु संद्रष्टव्यम् (सुप्रतीकम्) सुष्ठु प्रत्येति येन तम् (स्वञ्चम्) यः, सुष्ठ्वञ्चति तम् (हव्यवाहम्) यो हव्यानि वहति तम् (अरतिम्) सर्वत्र प्राप्तम् (मानुषाणाम्) मनुष्याणां सकाशात् ॥३॥
Connotation: - अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः। यथा कन्या दीर्घब्रह्मचर्येण विदुष्यः सत्योऽग्न्यादिविद्यां प्राप्य पुरुषाणां मध्यादुत्तममुत्तमं पतिं याचमानाः स्वाभीष्टं स्वाभीष्टं स्वामिनं प्राप्नुवन्ति तथैव पुरुषैरपि स्वेष्टा भार्याः प्राप्तव्याः ॥३॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. जशा कन्या दीर्घ ब्रह्मचर्याने विदुषी बनून अग्नी इत्यादी विद्या प्राप्त करून उत्तमोत्तम पतींची इच्छा बाळगतात व आपापल्या अभीष्ट पतीला प्राप्त करतात तसेच पुरुषांनीही आपल्या अनुकूल स्त्रिया प्राप्त कराव्यात. ॥ ३ ॥