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विश्वा॑ अ॒ग्नेऽप॑ द॒हारा॑ती॒र्येभि॒स्तपो॑भि॒रद॑हो॒ जरू॑थम्। प्र नि॑स्व॒रं चा॑तय॒स्वामी॑वाम् ॥७॥

English Transliteration

viśvā agne pa dahārātīr yebhis tapobhir adaho jarūtham | pra nisvaraṁ cātayasvāmīvām ||

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Pad Path

विश्वाः॑। अ॒ग्ने॒। अप॑। द॒ह॒। अरा॑तीः। येभिः॑। तपः॑ऽभिः। अद॑हः। जरू॑थम्। प्र। नि॒ऽस्व॒रम्। चा॒त॒य॒स्व॒। अमी॑वाम् ॥७॥

Rigveda » Mandal:7» Sukta:1» Mantra:7 | Ashtak:5» Adhyay:1» Varga:24» Mantra:2 | Mandal:7» Anuvak:1» Mantra:7


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर अग्नि से कैसा उपकार लेना चाहिये, इस विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥

Word-Meaning: - हे (अग्ने) अग्नि के तुल्य तेजस्वी विद्वन् ! (येभिः) जिन (तपोभिः) हाथों को तपानेवाले अग्नि के गुणों से अग्नि (जरूथम्) जीर्ण अवस्था को प्राप्त हुए पुराने काष्ठ को (अदहः) जलाता है उन गुणों से (विश्वाः) सब (अरातीः) शत्रुओं की सेनाओं को (अप, दह) जलाइये तथा (अमीवाम्) रोग को (निस्वरम्) निर्मूल जैसे हो, वैसे (प्र, चातयस्व) नष्ट कीजिये ॥७॥
Connotation: - हे विद्वानो ! जो आप अग्नि के प्रभाव को जान के आग्नेयास्त्र आदिकों को बना के संग्राम में प्रवृत्त हों तो अनेक शत्रुओं की सेनाएँ शीघ्र भस्म होवें, जैसे उत्तम वैद्य अपने शरीर को रोगरहित करके अन्यों को रोगरहित करता है, वैसे ही आप लोग अग्निविद्या के प्रभाव से रोगरूप शत्रुओं का निवारण करो ॥७॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनरग्निना कीदृश उपकारो ग्राह्य इत्याह ॥

Anvay:

हे अग्ने ! येभिस्तपोभिरग्निर्जरूथमदहस्तैर्विश्वा अरातीरप दहाऽमीवां निस्वरं प्र चातयस्व ॥७॥

Word-Meaning: - (विश्वाः) समग्राः (अग्ने) अग्निवद्विद्वन् (अप) (दह) (अरातीः) शत्रुसेनाः (येभिः) यैः (तपोभिः) प्रतप्तकरैरग्निगुणैः (अदहः) दहति (जरूथम्) जरावस्थां प्राप्तं जीर्णं काष्ठम् (प्र) (निस्वरम्) निर्मूलम् (चातयस्व) नाशं प्रापय। चततिर्गतिकर्मा। (निघं०२.१४) (अमीवाम्) रोगम् ॥७॥
Connotation: - हे विद्वांसो ! यदि भवन्तोऽग्निप्रभावं विदित्वाऽऽग्नेयाऽस्त्रादीनि निर्माय सङ्ग्रामे प्रवर्तेरँस्तर्ह्यनेकाः शत्रुसेनाः सद्यो दह्येयुर्यथा सद्वैद्यः स्वकीयं शरीरमरोगं कृत्वाऽन्यानरोगान् करोति तथैव भवन्तोऽग्निविद्याप्रभावेन रोगभूताञ्छत्रून्निवारयन्तु ॥७॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - हे विद्वानांनो ! तुम्ही अग्नीचा प्रभाव जाणून आग्नेयास्त्र इत्यादी तयार करा व युद्धास प्रवृत्त व्हा. त्यामुळे शत्रूंच्या अनेक सेना तत्काळ भस्म होतील. जसा उत्तम वैद्य आपले शरीर रोगरहित करून इतरांना रोगरहित करतो तसेच तुम्ही अग्निविद्येच्या प्रभावाने रोगरूपी शत्रूंचे निवारण करा. ॥ ७ ॥