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नू मे॒ ब्रह्मा॑ण्यग्न॒ उच्छ॑शाधि॒ त्वं दे॑व म॒घव॑द्भ्यः सुषूदः। रा॒तौ स्या॑मो॒भया॑स॒ आ ते॑ यू॒यं पा॑त स्व॒स्तिभिः॒ सदा॑ नः ॥२५॥

English Transliteration

nū me brahmāṇy agna uc chaśādhi tvaṁ deva maghavadbhyaḥ suṣūdaḥ | rātau syāmobhayāsa ā te yūyam pāta svastibhiḥ sadā naḥ ||

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Pad Path

नु। मे॒। ब्रह्मा॑णि। अ॒ग्ने॒। उत्। श॒शा॒धि॒। त्वम्। दे॒व॒। म॒घव॑त्ऽभ्यः। सु॒सू॒दः॒। रा॒तौ। स्या॒म॒। उ॒भया॑सः। आ। ते॒। यू॒यम्। पा॒त॒। स्व॒स्तिऽभिः॑। सदा॑। नः॒ ॥२५॥

Rigveda » Mandal:7» Sukta:1» Mantra:25 | Ashtak:5» Adhyay:1» Varga:27» Mantra:5 | Mandal:7» Anuvak:1» Mantra:25


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर विद्वान् कैसा हो, इस विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥

Word-Meaning: - हे (देव) धन की कामना करनेवाले (अग्ने) विद्वन् ! (त्वम्) आप (मघवद्भ्यः) बहुत धनयुक्त पुरुषों से (ब्रह्माणि) अन्नों की (मे) मेरे लिये (उत्, शशाधि) उत्कृष्टतापूर्वक शिक्षा कीजिये और (सुषूदः) दीजिये हम लोग (ते) तुम्हारे लिये ही देवें जिससे (उभयासः) देने लेनेवाले दोनों हम लोग (रातौ) सुपात्रों को दान देने के लिये प्रवृत्त (स्याम) हों (यूयम्) तुम लोग (स्वस्तिभिः) सुखों से (नः) हमारी (नु) शीघ्र (सदा) सब काल में, (आ, पात) अच्छे प्रकार रक्षा करो ॥२५॥
Connotation: - हे राजपुरुष ! आप न्यायपूर्वक हम सब लोगों को शिक्षा कीजिये, हम से यथायोग्य कर लिया कीजिये, पक्षपात छोड़ के सब के साथ वर्तिये, जिससे राजपुरुष और हम प्रजाजन सदा सुखी हों ॥२५॥ इस सूक्त में अग्नि, विद्वान्, श्रोता, उपदेशक, ईश्वर और राजप्रजा के कृत्य का वर्णन होने से इस सूक्त के अर्थ की इससे पूर्व सूक्त के अर्थ के साथ सङ्गति जाननी चाहिये ॥ इस अध्याय में अश्वि, द्यावापृथिवी, अग्नि, विद्युत्, उषःकाल, सेनायुद्ध, मित्रावरुण, इन्द्रावरुण, इन्द्रावैष्णव, द्यावापृथिवी, सविता, इन्द्रासोम, यज्ञ, सोमारुद्र, धनुष् आदि और अग्नि आदि के गुणों का वर्णन होने से इस अध्याय के अर्थ की पूर्व अध्याय के अर्थ के साथ सङ्गति जाननी चाहिये। यह श्रीमत् परमविद्वान् परमहंस परिव्राजकाचार्य्य विरजानन्द सरस्वती स्वामी जी के शिष्य परमहंस परिव्राजाकाचार्य श्रीमद्दयानन्द सरस्वती स्वामि से विरचित संस्कृतार्यभाषा से समन्वित सुप्रमाणयुक्त ऋग्वेदभाष्य में पञ्चमाष्टक में प्रथम अध्याय और सत्ताईसवाँ वर्ग तथा सप्तम मण्डल में प्रथम सूक्त भी समाप्त हुआ ॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनर्विद्वान् कीदृशः स्यादित्युच्यते।

Anvay:

हे देवाऽग्ने ! त्वं मघवद्भ्यो ब्रह्माणि म उच्छशाधि सुषूदो वयं ते तुभ्यमेव दद्याम येनोभयासो वयं रातौ स्याम यूयं स्वस्तिभिर्नो नु सदाऽऽपात ॥२५॥

Word-Meaning: - (नू) सद्यः। अत्र ऋचि तुनुघेति दीर्घः। (मे) मह्यम् (ब्रह्माणि) अन्नानि (अग्ने) विद्वन् (उत्) उत्कृष्टम् (शशाधि) शिक्षय (त्वम्) (देव) धनं कामयमान (मघवद्भ्यः) बहुधनयुक्तेभ्यः (सुषूदः) देहि (रातौ) सुपात्रेभ्यो दाने (स्याम) भवेम (उभयासः) दातृग्रहीतारः (आ) (ते) तुभ्यम् (यूयम्) (पात) रक्षत (स्वस्तिभिः) सुखैः (सदा) (नः) अस्मान् ॥२५॥
Connotation: - हे राजन् ! भवान्न्यायेन सर्वानस्मान् शिक्षस्वास्मत्तो यथाविधि करं गृहाण पक्षपातं विहाय सर्वैस्सह वर्त्तस्व येन राजपुरुषाः प्रजाजनाश्च वयं सदा सुखिनः स्यामेति ॥२५॥ अत्राग्निविद्वच्छ्रोत्र्युपदेशकेश्वरराजप्रजाकृत्यवर्णनादेतदर्थस्य पूर्वसूक्तार्थेन सह सङ्गतिर्वेद्या । अस्मिन्नध्यायेऽश्विद्यावापृथिव्यग्निविद्युदुषःसेनायुद्धमित्रावरुणेन्द्रावरुणेन्द्रावैष्णवद्यावापृथिवीसवित्रिन्द्रासोमयज्ञसोमारुद्रधनु- राद्यग्न्यादिगुणवर्णनादेतदर्थस्य पूर्वाध्यायेन सह सङ्गतिरस्तीति वेद्यम्। इति श्रीमत् परमविदुषां परमहंसपरिव्राजकाचार्याणां विरजानन्दसरस्वतीस्वामिनां शिष्येण परमहंसपरिव्राजकाचार्येण श्रीमद्दयानन्दसरस्वतीस्वामिना विरचिते संस्कृताऽऽर्यभाषाभ्यां समन्विते सुप्रमाणयुक्त ऋग्वेदभाष्ये पञ्चमाष्टके प्रथमोऽध्यायः सप्तविंशो वर्गः सप्तमे मण्डले प्रथमं सूक्तं च समाप्तम् ॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - हे राजा ! तू न्यायाने आम्हाला सर्वांना शिक्षण दे. आमच्याकडून यथायोग्य कर घे. भेदभाव न करता सर्वांबरोबर नीट वाग. ज्यामुळे राजपुरुष व प्रजाजन सुखी व्हावेत. ॥ २५ ॥