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मा नो॑ अग्ने दुर्भृ॒तये॒ सचै॒षु दे॒वेद्धे॑ष्व॒ग्निषु॒ प्र वो॑चः। मा ते॑ अ॒स्मान्दु॑र्म॒तयो॑ भृ॒माच्चि॑द्दे॒वस्य॑ सूनो सहसो नशन्त ॥२२॥

English Transliteration

mā no agne durbhṛtaye sacaiṣu deveddheṣv agniṣu pra vocaḥ | mā te asmān durmatayo bhṛmāc cid devasya sūno sahaso naśanta ||

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Pad Path

मा। नः॒। अ॒ग्ने॒। दुः॒ऽभृ॒तये॑। सचा॑। ए॒षु। दे॒वऽइ॑द्धेषु। अ॒ग्निषु॑। प्र। वो॒चः॒। मा। ते॒। अ॒स्मान्। दुः॒ऽम॒तयः॑। भृ॒मात्। चि॒त्। दे॒वस्य॑। सू॒नो॒ इति॑। स॒ह॒सः॒। न॒श॒न्त॒ ॥२२॥

Rigveda » Mandal:7» Sukta:1» Mantra:22 | Ashtak:5» Adhyay:1» Varga:27» Mantra:2 | Mandal:7» Anuvak:1» Mantra:22


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर मनुष्य सब से किसको ग्रहण करें, इस विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥

Word-Meaning: - हे (अग्ने) विद्वन् ! आप (सचा) सम्बन्ध से (एषु) इन (देवेद्धेषु) वायु आदि में प्रज्वलित किये हुए (अग्निषु) अग्नियों में (दुर्भृतये) दुष्ट दुःखयुक्त कठिन धारण वा पोषण जिसका उसके लिये (नः) हमको (मा, प्र, वोच) मत कठोर कहो। हे (सहसः) बलवान् (देवस्य) विद्वान् के (सूनो) पुत्र ! (भृमात्) भ्रान्ति से (चित्) भी (ते) आपके (दुर्मतयः) दुष्टबुद्धि लोग (अस्मान्) हमको (मा) मत (नशन्त) प्राप्त होवें ॥२२॥
Connotation: - सब मनुष्यों को योग्य है कि सब से शुभ गुण सुन्दर बुद्धि और उत्तम विद्या का ग्रहण करें, दोषों को कदापि ग्रहण न करें ॥२२॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनर्मनुष्याः सर्वेभ्यः किं गृह्णीयुरित्याह ॥

Anvay:

हे अग्ने ! त्वं सचैषु देवेद्धेष्वग्निषु दुर्भृतये नो मा प्र वोचः। हे सहसो देवस्य सूनो ! भृमाच्चित्ते दुर्मतयोऽस्मान् मा नशन्त ॥२२॥

Word-Meaning: - (मा) (निषेधे) (नः) अस्मान् (अग्ने) विद्वन् (दुर्भृतये) दुष्टाभृतिर्धारणं पोषणं वा यस्य तस्मै (सचा) सम्बन्धेन (एषु) (देवेद्धेषु) देवैरिद्धेषु प्रज्वालितेषु (अग्निषु) (प्र) (वोचः) (मा) (ते) तव (अस्मान्) (दुर्मतयः) (भृमात्) भ्रान्तेः। अत्र वर्णव्यत्ययेन रस्य स्थान ऋकारो वा च्छन्दसीति सम्प्रसारणं वा। (चित्) अपि (देवस्य) विदुषः (सूनो) तनय (सहसः) बलिष्ठस्य (नशन्त) व्याप्नुवन्तु। नशदिति व्याप्तिकर्मा। (निघं०२.१८) ॥२२॥
Connotation: - सर्वैर्मनुष्यैः सर्वेभ्यः शुभगुणाः सुमतिः सुविद्या च गृहीतव्या नैव दोषाः ॥२२॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - सर्व माणसांनी सर्वांपासून शुभ गुण, चांगली बुद्धी व उत्तम विद्या ग्रहण करावी. दोष कधी स्वीकारू नयेत. ॥ २२ ॥