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तम॒ग्निमस्ते॒ वस॑वो॒ न्यृ॑ण्वन्त्सुप्रति॒चक्ष॒मव॑से॒ कुत॑श्चित्। द॒क्षाय्यो॒ यो दम॒ आस॒ नित्यः॑ ॥२॥

English Transliteration

tam agnim aste vasavo ny ṛṇvan supraticakṣam avase kutaś cit | dakṣāyyo yo dama āsa nityaḥ ||

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Pad Path

तम्। अ॒ग्निम्। अस्ते॑। वस॑वः। नि। ऋ॒ण्व॒न्। सु॒ऽप्र॒ति॒चक्ष॑म्। अव॑से। कुतः॑। चि॒त्। द॒क्षाय्यः॑। यः। दमे॑। आस॑। नित्यः॑ ॥२॥

Rigveda » Mandal:7» Sukta:1» Mantra:2 | Ashtak:5» Adhyay:1» Varga:23» Mantra:2 | Mandal:7» Anuvak:1» Mantra:2


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर उस बिजुली को कैसे प्रकट करे, इस विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥

Word-Meaning: - हे विद्वानो ! (यः) जो (दक्षाय्यः) चतुर विद्वान् के तुल्य (दमे) घर वा इन्द्रियादि के दमन में (नित्यः) सनातन उपयोगी (आस) है जिस (सुप्रतिचक्षम्) मनुष्य जिसके द्वारा अनेक विद्याओं को अच्छे प्रकार देखता है (कुतश्चित्) किसी से (अवसे) रक्षा वा अधिक अन्न के लिये (वसवः) प्रथम कक्षा के विद्वान् (नि, ऋण्वन्) निरन्तर प्रसिद्ध करें (तम्) उस (अग्निम्) विद्युत् को (अस्ते) घर में वा फेंकने में आप लोग उत्पन्न करो ॥२॥
Connotation: - हे विद्वानो ! जो यह नित्यस्वरूप विद्युत् अग्नि स्थूल द्रव्यों को घर बना के नित्य स्वरूप से स्थित है, उस अग्नि को विद्या और क्रियाओं से प्रकट कर तथा कलायन्त्रों में संयुक्त कर के बहुत अन्न, धन और रक्षा को प्राप्त होओ ॥२॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनस्तं कथं जनयेदित्याह ॥

Anvay:

हे विद्वांसो ! यो दक्षाय्य इव दमे नित्य आस यं सुप्रतिचक्षं कुतश्चिदवसे वसवो न्यृण्वँस्तमग्निमस्ते भवन्तो जनयन्तु ॥२॥

Word-Meaning: - (तम्) (अग्निम्) विद्युदाख्यम् (अस्ते) गृहे वा प्रक्षेपणे (वसवः) प्राथमकल्पिका विद्वांसः (नि) नितराम् (ऋण्वन्) प्रसाध्नुवन् (सुप्रतिचक्षम्) सुष्ठु प्रतिचष्टे पश्यत्यनेका विद्या येन तम् (अवसे) रक्षणाय बह्वन्नाय वा। अव इत्यन्ननाम। (निघं०२.७) (कुतः) कस्मात् (चित्) अपि (दक्षाय्यः) दक्षश्चतुरो विद्वानिव (यः) (दमे) गृहे दमने वा (आस) अस्ति (नित्यः) सनातनः ॥२॥
Connotation: - हे विद्वांसो ! योऽयं नित्यस्वरूपो विद्युदग्निर्मूर्त्तद्रव्याणि गृहाणि कृत्वा नित्यस्वरूपेण प्रतिष्ठितोऽस्ति तं विद्याक्रियाभ्यां जनयित्वा कलायन्त्रेषु संप्रयोज्य बह्वन्नधनं रक्षणं च प्राप्नुवन्तु ॥२॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - हे विद्वानांनो ! हा नित्यस्वरूप विद्युत अग्नी स्थूल द्रव्यात वास करून नित्य स्वरूपात स्थित आहे. त्या अग्नीला विद्या व क्रिया याद्वारे प्रकट करून यंत्रात संयुक्त करा व अन्न, धन व रक्षण प्राप्त करून घ्या. ॥ २ ॥